हम स्वयं को कैसे सुधारें ?
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हम अपने से बाहर इतनी बुराइयाँ देखते हैं, जिनके कारण बड़ी ग्लानि होती है| हमारे शास्त्र तो कहते हैं कि बाहर की बुराइयों का कारण हमारे भीतर की बुराई है| यदि हम अपने भीतर की बुराई को सुधार लें तो बाहर की बुराई भी समाप्त हो जायेगी| इसका एकमात्र उपाय जो मुझे दिखाई देता है वह तो यह है कि हम अच्छे साहित्य को पढ़ें, अच्छे लोगों के साथ रहें, और भगवान का ध्यान करें| गीता में भगवान कहते हैं .....
"इन्द्रियार्थेषु वैराग्यमनहङ्कार एव च| जन्ममृत्युजराव्याधिदुःखदोषानुदर्शनम्"||१३:९||
अर्थात् इन्द्रियों के विषय के प्रति वैराग्य, अहंकार का अभाव, जन्म-मृत्यु, वृद्धावस्था, व्याधि और दुख में दोष दर्शन करें|
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मेरी सोच तो यह है कि स्वयं को सुधारने के लिये हम प्रेमपूर्वक नित्य शान्ति पाठ करें, भगवान का ध्यान करें, उनके नाम का अधिकाधिक जप करें, और जीवन का हर कार्य भगवान की प्रसन्नता के लिए ही करें| स्वयं को सुधारने के लिए हमें अपने जीवन का केंद्रबिंदु भगवान को बनाना पडेगा| अन्य कोई उपाय नहीं है|
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जीवन में मैं अनेक अच्छे से अच्छे और बुरे से बुरे अनुभवों से निकला हूँ, उन्हीं के आधार पर यह सब लिख रहा हूँ| विश्व के अनेक देशों की यात्राएँ की हैं| जब साम्यवाद अपने चरम शिखर पर था ऐसे समय में मैं घोर नास्तिक देश रूस में लगभग दो वर्ष रहा हूँ| घोरतम नास्तिक देश उत्तरी कोरिया में बीस दिन रहा हूँ, नास्तिक देश चीन की चार बार यात्रा की है, और नास्तिक देशों ... युक्रेन, रोमानिया और लाटविया का भी तत्कालीन जीवन देखा है| बोल्शेविक क्रांति की पचास वीं और इक्यावन वीं वर्षगाँठ मनाते हुए साम्यवादी रूस को भी देखा है और कोरयाई युद्ध की तीसवीं वर्षगाँठ मनाते उत्तरी कोरिया को भी| ईश्वर के बिना मनुष्य के मन की कैसी वेदना होती है, इसको देखा भी है और प्रत्यक्ष अनुभव भी किया है| उन्हीं अनुभवों के आधार पर कह रहा हूँ कि जीवन में ईश्वर को लाये बिना कोई सुधार नहीं हो सकता| हमारा प्रथम, अंतिम और एकमात्र उद्देश्य है जीवन में ईश्वर की प्राप्ति| ईश्वर को तो एक न एक दिन प्राप्त करना ही होगा, तब तक यह जीवन-मृत्यु का यह चक्र चलता रहेगा| सभी को शुभ कामनाएँ और नमन!
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ॐ तत्सत ! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२ फरवरी २०१९
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हम अपने से बाहर इतनी बुराइयाँ देखते हैं, जिनके कारण बड़ी ग्लानि होती है| हमारे शास्त्र तो कहते हैं कि बाहर की बुराइयों का कारण हमारे भीतर की बुराई है| यदि हम अपने भीतर की बुराई को सुधार लें तो बाहर की बुराई भी समाप्त हो जायेगी| इसका एकमात्र उपाय जो मुझे दिखाई देता है वह तो यह है कि हम अच्छे साहित्य को पढ़ें, अच्छे लोगों के साथ रहें, और भगवान का ध्यान करें| गीता में भगवान कहते हैं .....
"इन्द्रियार्थेषु वैराग्यमनहङ्कार एव च| जन्ममृत्युजराव्याधिदुःखदोषानुदर्शनम्"||१३:९||
अर्थात् इन्द्रियों के विषय के प्रति वैराग्य, अहंकार का अभाव, जन्म-मृत्यु, वृद्धावस्था, व्याधि और दुख में दोष दर्शन करें|
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मेरी सोच तो यह है कि स्वयं को सुधारने के लिये हम प्रेमपूर्वक नित्य शान्ति पाठ करें, भगवान का ध्यान करें, उनके नाम का अधिकाधिक जप करें, और जीवन का हर कार्य भगवान की प्रसन्नता के लिए ही करें| स्वयं को सुधारने के लिए हमें अपने जीवन का केंद्रबिंदु भगवान को बनाना पडेगा| अन्य कोई उपाय नहीं है|
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जीवन में मैं अनेक अच्छे से अच्छे और बुरे से बुरे अनुभवों से निकला हूँ, उन्हीं के आधार पर यह सब लिख रहा हूँ| विश्व के अनेक देशों की यात्राएँ की हैं| जब साम्यवाद अपने चरम शिखर पर था ऐसे समय में मैं घोर नास्तिक देश रूस में लगभग दो वर्ष रहा हूँ| घोरतम नास्तिक देश उत्तरी कोरिया में बीस दिन रहा हूँ, नास्तिक देश चीन की चार बार यात्रा की है, और नास्तिक देशों ... युक्रेन, रोमानिया और लाटविया का भी तत्कालीन जीवन देखा है| बोल्शेविक क्रांति की पचास वीं और इक्यावन वीं वर्षगाँठ मनाते हुए साम्यवादी रूस को भी देखा है और कोरयाई युद्ध की तीसवीं वर्षगाँठ मनाते उत्तरी कोरिया को भी| ईश्वर के बिना मनुष्य के मन की कैसी वेदना होती है, इसको देखा भी है और प्रत्यक्ष अनुभव भी किया है| उन्हीं अनुभवों के आधार पर कह रहा हूँ कि जीवन में ईश्वर को लाये बिना कोई सुधार नहीं हो सकता| हमारा प्रथम, अंतिम और एकमात्र उद्देश्य है जीवन में ईश्वर की प्राप्ति| ईश्वर को तो एक न एक दिन प्राप्त करना ही होगा, तब तक यह जीवन-मृत्यु का यह चक्र चलता रहेगा| सभी को शुभ कामनाएँ और नमन!
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ॐ तत्सत ! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२ फरवरी २०१९
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