Wednesday 4 August 2021

जब भगवान स्वयं ही समक्ष हों तो उनकी किस विधि से उपासना करें? ---

 

जब भगवान स्वयं ही समक्ष हों तो उनकी किस विधि से उपासना करें? उनके सिवाय कोई अन्य तो है ही नहीं| चिदाकाश में वे स्वयं ही स्वयं का ध्यान कर रहे हैं|
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"मन्मना भव मद्भक्तो मद्याजी मां नमस्कुरु| मामेवैष्यसि युक्त्वैवमात्मानं मत्परायणः||९:३४||"
"मन्मना भव मद्भक्तो मद्याजी मां नमस्कुरु| मामेवैष्यसि सत्यं ते प्रतिजाने प्रियोऽसि मे||१८:६५||"
"सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज| अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः||१८:६६||"
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इस निर्जनता (सब चिंताओं का विस्मृत होना) में कूटस्थ-चैतन्य (आज्ञाचक्र से ऊपर दिखाई देने वाले ज्योतिर्मय ब्रह्म की चेतना) ही जीवात्मा का एकमात्र निवास, आश्रम, और अस्तित्व है| "कूटस्थ चैतन्य" ही हमारा "स्वधर्म" है, जिसके बारे में भगवान श्री कृष्ण ने कहा है ....
"श्रेयान्स्वधर्मो विगुणः परधर्मात्स्वनुष्ठितात्| स्वधर्मे निधनं श्रेयः परधर्मो भयावहः||३:३५||"
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ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
४ अगस्त २०२०

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