कश्मीर का अतीत बहुत अधिक गौरवशाली रहा है| कश्यप ऋषि की तपोभूमि है कश्मीर जहाँ की शारदा पीठ कभी वैदिक शिक्षा की सर्वोच्च पीठों में से एक थी| वहाँ ललितादित्य जैसे महान सम्राट, आचार्य अभिनव गुप्त जैसे महान दार्शनिक, और लल्लेश्वरी देवी जैसी महान शिवभक्त हुई हैं| कश्मीरी शैव दर्शन का वहाँ जन्म और विकास हुआ जिसके ग्रंथ शैवागमों और तंत्रागमों में प्रमुख स्थान रखते हैं| बौद्धमत का भी वहाँ खूब प्रचार हुआ था| चीनी यात्री ह्वेन त्सांग (玄奘) जो राजा हर्षवर्धन के समय में भारत आया था, ने अपने ग्रंथों में कश्मीर में ढाई हजार मठों के होने की बात लिखी है| उस समय तक्षशिला तक का शासन कश्मीर के आधीन था| आचार्य अभिनव गुप्त को भगवान् पतंजलि की तरह शेषावतार कहा जाता है| उनकी परंपरा के आचार्यों ने उन्हें ‘योगिनीभू’ और भगवान शिव का अवतार बताया है| आचार्य शंकर भी वहाँ गए थे| श्रीनगर को सम्राट अशोक ने बसाया था| ऐसा कश्मीर अपने अतीत के गौरव को पुनः प्राप्त करेगा, निश्चित रूप से करेगा| धर्म की वहाँ पुनर्स्थापना होगी|
No comments:
Post a Comment