समय बहुत कम बचा है। अब सोच-विचार करने, या इधर-उधर भाग-दौड़ करने का समय नहीं है। धर्मग्रंथों का और उपदेशों का कोई अंत नहीं है, कहाँ-कहाँ ध्यान देंगे? वासनाओं का भी अंत नहीं है, कब तक उनके पीछे-पीछे भागते रहेंगे?
सौ बात की एक बात है -- सारे झंझटों को त्याग कर, अपने घर के एकांत में बैठिए और यथासंभव पूर्ण भक्ति से "राम" नाम का जप करते रहिए। कल्याण होगा, निश्चित रूप से होगा। राम नाम से बड़ा कोई मंत्र नहीं है।
राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम !!
मेरे लिए अब किसी उपदेश, या धर्म-अधर्म, पाप-पुण्य, कर्म-अकर्म आदि का कोई महत्व नहीं रहा है। सामने पद्मासन में बैठे हुये सच्चिदानंद भगवान श्रीकृष्ण स्वयं ही स्वयं का ध्यान कर रहे हैं। उनके सिवाय पूरी सृष्टि में, व सृष्टि से परे कोई अन्य नहीं है; मैं भी नहीं। उन्हीं के दर्शन, उन्हीं का ध्यान, उन्हीं की चेतना और उन्हीं को समर्पण। वे ही गुरु है, वे ही विष्णु हैं, और वे ही परमशिव हैं। बस, यही मेरी साधना है, यही ब्राह्मी-स्थिति है, और यही कूटस्थ-चैतन्य है। और मुझे कुछ नहीं आता-जाता। सब कुछ विस्मृत हो रहा है।
ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
५ जुलाई २०२१
भारतवर्ष में जन्म लेकर भी जिसने भगवान का भजन नहीं किया वह बहुत ही अभागा और इस पृथ्वी पर भार है.
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हृदय में बैठे भगवान की ही सुनो, अन्य किसी की नहीं. ॐ ॐ ॐ !!