अभी लिखने के लिए और कुछ भी नहीं बचा है। पिछले दस वर्षों में अपनी सीमित बुद्धि से जो भी समझ में आया, वह इस फेसबुक मंच पर खूब लिखाहै। हिन्दी भाषा में लिखने का बिल्कुल भी अभ्यास नहीं था, उसका भी खूब अच्छा अभ्यास हुआ, हिन्दी भाषा की अशुद्धियाँ दूर हुईं, स्वयं के शब्द-कोष में खूब वृद्धि हुई, और आत्म-विश्वास आया। कई नए विषयों का ज्ञान हुआ, बहुत अच्छे-अच्छे मित्र मिले और खूब सत्संग हुआ।
फेसबुक पर आने के पश्चात जो सबसे बड़ी बात जीवन में सीखी, वह यह है कि -- "भगवान हैं, यहीं पर हैं, इसी समय हैं, सर्वत्र हैं, और सर्वदा हैं।"
सभी मित्रों में मैंने भगवान को देखा, और भगवान में सभी मित्रों को देखा।
इस मंच का अधिकाधिक लाभ मैंने उठाया है, सिर्फ काल-यापन के लिए इस मंच पर नहीं था। इस मंच को छोड़ कर कहीं जा नहीं रहा, यहीं रहूँगा, सिर्फ प्रस्तुतियों की आवृति कम हो जायेंगी। आप सब मेरे निजात्मगण, और परमात्मा की सर्वश्रेष्ठ अभिव्यक्तियाँ हैं। परमात्मा का परम-प्रेम और उनकी आरोग्यकारी उपस्थिती आप सब की अंतर्रात्मा में जागृत हो।
ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
६ जुलाई २०२१
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