Thursday 5 August 2021

यह सारा संसार प्रकृति के तीनों गुणों का ही खेल है ----

 

यह सारा संसार प्रकृति के तीनों गुणों का ही खेल है। यही भगवान की माया है जो आवरण और विक्षेप के रूप में कार्यरत है। हमारे सारे दुःखों का कारण तमोगुण और रजोगुण हैं। त्रिगुणातीत होना ही मुक्ति है। गीता में भगवान भी हमें निस्त्रैगुण्य होने को कहते हैं --
"त्रैगुण्यविषया वेदा निस्त्रैगुण्यो भवार्जुन।
निर्द्वन्द्वो नित्यसत्त्वस्थो निर्योगक्षेम आत्मवान्॥२:४५॥"
अर्थात् - हे अर्जुन वेदों का विषय तीन गुणों से सम्बन्धित (संसार से) है तुम त्रिगुणातीत निर्द्वन्द्व नित्य सत्त्व (शुद्धता) में स्थित योगक्षेम से रहित और आत्मवान् बनो॥"
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भाष्यकार भगवान आचार्य शंकर अपने भाष्य में कहते हैं कि -- "जो इस प्रकार विवेकबुद्धि से रहित हैं, उन कामपरायण पुरुषों के लिए वेद त्रैगुण्यविषयक हैं, अर्थात् तीनों गुणों के कार्यरूप संसार को ही प्रकाशित करनेवाले हैं। परंतु हे अर्जुन, तूँ असंसारी निष्कामी तथा निर्द्वन्द्व हो। सुखदुःख के हेतु जो परस्पर विरोधी (युग्म) पदार्थ हैं उनका नाम द्वन्द्व है, उनसे रहित हो और नित्य सत्त्वस्थ हो अर्थात् सदा सत्त्वगुण के आश्रित तथा निर्योगक्षेम हो। अप्राप्त वस्तु को प्राप्त करनेका नाम योग है, और प्राप्त वस्तुके रक्षणका नाम क्षेम है। योगक्षेम को प्रधान मानने वाले की कल्याणमार्ग में प्रवृत्ति होनी अत्यन्त कठिन है, अतः तू योगक्षेम को न चाहनेवाला तथा आत्मवान् हो अर्थात् (आत्मविषयों में) प्रमादरहित हो। तुझ स्वधर्मानुष्ठान में लगे हुए के लिये यह उपदेश है।"
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इस के लिए हमें क्या करना होगा? इसकी विधि गीता में ही भगवान श्रीकृष्ण ने बड़े स्पष्ट शब्दों में अन्यत्र बताई है। योगसूत्रों में और उपनिषदों में भी इस विषय पर बहुत अच्छे और स्पष्ट उपदेश हैं। सरल से सरल शब्दों में कह सकते हैं कि हमें अपने अंतःकरण का विषय वासुदेव को ही बनाना होगा। अन्य कोई उपाय नहीं है। समान रूप से सर्वव्यापी भगवान वासुदेव के प्रति भक्ति भी जागृत करनी होगी, और उनका ध्यान भी करना होगा।
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सभी को शुभ कामनायें, सभी का मंगल हो। आप सब महान आत्माओं को नमन ! ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
३ अगस्त २०२१

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