Thursday 5 August 2021

स्वयं ही अग्नि बनकर प्रज्ज्वलित हो जाओ ---

 

स्वयं ही अग्नि बनकर प्रज्ज्वलित हो जाओ ---
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चारों ओर छाये हुए असत्य के अति घने भयावह अंधकार को दूर करने का एक ही उपाय है -- "स्वयं ही अग्नि बनकर प्रज्ज्वलित हो जाओ।" किसी अन्य से कोई अपेक्षा मत करो, कोई दूसरा नहीं आयेगा। जिन सत्यनिष्ठ व्यक्तियों के हृदय में परमात्मा के प्रति प्रेम, श्रद्धा, और विश्वास है, उनका मार्ग-दर्शन, और उनकी रक्षा - किसी न किसी माध्यम से भगवान स्वयं करते हैं। भगवान ने वचन दिया है --
"सकृदेव प्रपन्नाय तवास्मीति च याचते। अभयं सर्वभूतेभ्यो ददाम्येतद् व्रतं मम॥"
(वाल्मीकि रामायण ६/१८/३३).
अर्थात जो एक बार भी शरणमें आकर 'मैं तुम्हारा हूँ' ऐसा कहकर मेरे से रक्षा की याचना करता है, उसको मैं सम्पूर्ण प्राणियोंसे अभय कर देता हूँ -- यह मेरा व्रत है। जब भगवान ने स्वयं इतना बड़ा आश्वासन दिया है, तब भय किस बात का? हम स्वयं राममय बनें।
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भगवान तो स्वयं ही हमारे हृदय में बिराजना चाहते हैं, अतः उनसे कुछ मांगना क्या उनका अपमान नहीं है? उनसे दूरी तो हमने ही बना रखी है। क्यों न हम उन्हें स्वयं में प्रवाहित होने दें? रात्री को सोने से पूर्व भगवान का गहनतम ध्यान कर के ही सोयें, वह भी इस तरह सोयें जैसे माता की गोद में निश्चिन्त होकर एक शिशु सो रहा है। प्रातः वैसे ही उठें जैसे एक शिशु अपनी माँ की गोद से उठ रहा है। उठते ही एक गहरा प्राणायाम कर के कुछ समय के लिए फिर से भगवान का ध्यान करें। दिवस का प्रारम्भ सदा भगवान के ध्यान से होना चाहिए। दिन में जब भी समय मिले, भगवान का फिर ध्यान करें। उनकी स्मृति निरंतर बनी रहे। यह शरीर चाहे नष्ट होकर छूट जाए, पर परमात्मा की स्मृति कभी न छूटे। भगवान सदा हमारे साथ हैं, और हर समय हमारी रक्षा कर रहे हैं।
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जीवन और मृत्यु से परे हम सदा भगवान के साथ एक हैं, और एक ही रहेंगे। हम यह भौतिक देह नहीं, उन की अनंतता और परम प्रेम हैं। ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर
२७ जुलाई २०२१

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