Thursday 5 August 2021

हे मेरे मन, तूँ अब स्वतंत्र है ---

 

हे मेरे मन, तूँ अब स्वतंत्र है, जहाँ भी जहाँ तक भी जा सकता है, वहाँ तक जा, और दसों दिशाओं के अखंड अनंत विस्तार में स्थायी रूप से सर्वत्र फैल जा। तुम्हें अब पूरी छूट है। याद रख कि मुझ आत्मा से अन्य कोई है ही नहीं। तुम्हारी गति मुझ से बाहर नहीं है। जहाँ भी तूँ जायेगा, वहीं मुझ आत्मा को ही पायेगा।
मोह और राग-द्वेष का अस्तित्व निद्रा में एक स्वप्न मात्र था। सर्वत्र व्याप्त ब्रह्म मैं ही हूँ।
शिवोहम् शिवोहम् अहं ब्रह्मास्मि॥ ॐ ॐ ॐ॥
कृपा शंकर
४ अगस्त २०२१

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