कब तक इस नर्ककुंड में हम कीड़े की तरह पड़े रहेंगे?
इस नर्ककुंड से बाहर निकलने के लिए स्वयं को परमात्मा के साथ जोड़िए, अपना चिंतन देवता की तरह कीजिये ---
जो हम जैसा भी सोचते हैं, वैसे ही बन जाते हैं। गलत चिंतन करने का कोई भी बहाना चलने वाला नहीं है। प्रकृति अपने नियमों का पालन बड़ी कठोरता से करती है, वह किसी को क्षमा नहीं करती। क्षमा के पात्र वे ही हैं, जो परमात्मा से जुड़ जाते हैं। हम यह नश्वर देह नहीं, शाश्वत आत्मा हैं, जो परमात्मा के साथ एक है। अपने आत्म-तत्व का चिंतन कीजिये, और प्रयासपूर्वक एक देवता की तरह ही सोचिए। ॐ तत्सत् !! ॐ स्वस्ति !!
१० जुलाई २०२१
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