Thursday 5 August 2021

सुखी वही है जिसके हृदय में राम है ---

 

सुखी वही है जिसके हृदय में राम है ---
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हमारा कार्य निरंतर परमात्मा के स्मरण द्वारा अपनी चित्तभूमि में परमात्मा के प्रकाश की वृद्धि करना है, बाकी का कार्य परमात्मा पूर्ण करेंगे। हमारे में जैसे-जैसे सतोगुण की वृद्धि, और तमोगुण का ह्रास होता है, धीरे-धीरे वैसे ही गुरु में और स्वयं में भेद समाप्त होने लगता है। गुणातीत अवस्था में तो परमात्मा से भी भेद नहीं रहता।
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पता नहीं क्यों, बिना किसी प्रयास के स्वाभाविक रूप से मेरे हृदय से कई बार स्वतः प्रार्थना निकलती ही रहती है कि, "हे प्रभु, बहुत देर हो चुकी है, भारत भूमि पर फिर से अवतरित होकर दुष्टों का संहार, और धर्म की रक्षा करो।" यह मेरी ही नहीं, हम सब के हृदय की प्रार्थना है।
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हम शाश्वत आत्मा हैं, जिसकी अभीप्सा (तड़प और प्यास) सिर्फ परमात्मा के लिए है। परमात्मा की प्राप्ति ही आत्मा का स्वधर्म है। इस उद्देश्य के लिए लिया गया कर्म ही कर्मयोग है। इस स्वधर्म का थोड़ा सा भी अनुष्ठान महा भय से रक्षा करता है, अतः स्वधर्म पर दृढ़ रहो। गीता में भगवान का कथन है --
"नेहाभिक्रमनाशोऽस्ति प्रत्यवायो न विद्यते।
स्वल्पमप्यस्य धर्मस्य त्रायते महतो भयात्॥२:४०॥"
अर्थात् - "इसमें क्रमनाश और प्रत्यवाय दोष नहीं है। इस धर्म (योग) का अल्प अभ्यास भी महान् भय से रक्षण करता है॥"
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भगवान का यह भी आश्वासन है --
"श्रेयान्स्वधर्मो विगुणः परधर्मात्स्वनुष्ठितात्।
स्वधर्मे निधनं श्रेयः परधर्मो भयावहः॥३:३५॥"
अर्थात् - "सम्यक् प्रकार से अनुष्ठित परधर्म की अपेक्षा गुणरहित स्वधर्म का पालन श्रेयष्कर है; स्वधर्म में मरण कल्याणकारक है (किन्तु) परधर्म भय को देने वाला है॥"
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सुखी वही है जिसके हृदय में राम है। मैं तो अनेक अति-समृद्ध लोगों को व्यक्तिगत रूप से जानता हूँ, विश्व के अनेक देशों की यात्रा की है और विदेशों में भी खूब रहा हूँ, पर मैंने तो कहीं किसी को भी सुखी नहीं पाया। इस पृथ्वी का सारा धन-धान्य भी एक व्यक्ति को सुखी नहीं कर सकता। जिसके मन में लालसा है, वह कभी सुखी नहीं हो सकता, और जिसके मन में लालसा नहीं है, वह भी दुःखी है। सुखी वही है जिसके हृदय में राम है। ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर
३१ जुलाई २०२१

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