Thursday, 5 August 2021

"भूमा" ही सत्य है, "भूमा" में ही सुख है, अल्पता में नहीं ---

 

"भूमा" ही सत्य है, "भूमा" में ही सुख है, अल्पता में नहीं ---
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पूर्ण भक्ति से समर्पित होकर परमात्मा की अनंतता और विराटता पर ध्यान करते करते "भूमा" की अनुभूति होती है। ब्रह्मविद्या के प्रथम आचार्य भगवान सनत्कुमार से उनके प्रिय शिष्य देवर्षि नारद ने पूछा -- "सुखं भगवो विजिज्ञास इति"। जिसका उत्तर भगवान् श्री सनत्कुमार जी का प्रसिद्ध वाक्य है -- "यो वै भूमा तत् सुखं नाल्पे सुखमस्ति"। भूमा में यानि व्यापकता, विराटता में सुख है, अल्पता में नहीं । जो भूमा है, व्यापक है, वह सुख है। कम में सुख नहीं है।
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"भूमा" शब्द सामवेद के छान्दोग्य उपनिषद (७/२३/१) में आता है, जिसका अर्थ है -- सर्व, विराट, विशाल, अनंत, विभु, और सनातन।
हिन्दी भाषा के कालजयी महाकाव्य "कामायनी" की इन पंक्तियों में महाकवि जयशंकर प्रसाद ने "भूमा" शब्द का प्रयोग किया है जिसका अर्थ बड़ा दार्शनिक है --
"जिसे तुम समझे हो अभिशाप, जगत की ज्वालाओं का मूल,
ईश का वह रहस्य वरदान, कभी मत इसको जाओ भूल।
विषमता की पीडा से व्यक्त हो रहा स्पंदित विश्व महान,
यही दुख-सुख विकास का सत्य यही 'भूमा' का मधुमय दान |"
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दूसरे शब्दों में "भूमा", साधना की लगभग पूर्णता का आभास है। मनुष्य का शरीर एक सीमा के भीतर एक भूमि है। इस सीमित शरीर का जब विराट् से सम्बन्ध हो जाता है, तब यह भूमा है। आत्म-साक्षात्कार के पश्चात जो अनुभूति होती है, वह भूमा है। भूमा एक अनंत विराटता की अनुभूति का विषय है, बुद्धि का नहीं। इसकी अनुभूति उन्हें ही होती है जो परमात्मा की अनंत विराटता पर ध्यान करते हैं।
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आप सभी महान आत्माओं को नमन !! आप परमात्मा की सर्वश्रेष्ठ अभिव्यक्ति हैं।
ॐ तत्सत् | ॐ नमो भगवते वसुदेवाय ||
कृपा शंकर
१९ जुलाई २०२१

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