Thursday 5 August 2021

(प्रश्न १) भवसागर क्या है? (प्रश्न 2) भवसागर को कैसे पार करें? ---

(प्रश्न १) भवसागर क्या है? (प्रश्न 2) भवसागर को कैसे पार करें? ---

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(उत्तर १) भवसागर क्या है? :-- भव-सागर को इस उदाहरण से समझ सकते हैं -- हम खाते क्यों हैं? -- कमाने के लिए, और कमाते क्यों हैं? -- खाने के लिए। यह चक्र कभी समाप्त नहीं होता। यही भवसागर का एक छोटा सा रूप है। इस संसार से सुख की आशा ही हमें इस भवसागर में फँसाए रखती है, जो कभी किसी को नहीं मिलता। यह एक मृगतृष्णा है। हमारी कामनाएँ और वासनाएँ ही इस तृष्णा रूपी भवसागर का निर्माण करती हैं।
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कामनाओं ओर वासनाओं से मुक्त होना ही भवसागर को पार करना है। और भी स्पष्ट शब्दों में संसार की निःसारता को समझ कर, विषय-वासनाओं को त्याग कर परमात्मा के प्रेम में मग्न हो जाना ही -- भवसागर को पार करना है।
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(उत्तर २) भवसागर को कैसे पार करें? :-- श्रीरामचरितमानस के उत्तरकाण्ड में संत तुलसीदास जी ने भवसागर को पार करने की जो विधि भगवान श्रीराम के मुख से कहलवाई है, वह समझने में सबसे अधिक सरल है --
चौपाई :--
"नर तनु भव बारिधि कहुँ बेरो। सन्मुख मरुत अनुग्रह मेरो।।
करनधार सदगुर दृढ़ नावा। दुर्लभ साज सुलभ करि पावा।।"
दोहा/सोरठा :--
"जो न तरै भव सागर नर समाज अस पाइ।
सो कृत निंदक मंदमति आत्माहन गति जाइ॥"
इसका सार यह कि यह मनुष्य शरीर इस भवसागर को पार करने के लिए भगवान द्वारा दी हुई एक नौका है। सन्मुख वायु -- भगवान का अनुग्रह है। इस नौका के कर्णधार सदगुरु हैं। जो इस नौका को पाकर भी भवसागर को न तरे, उस से बड़ा अभागा अन्य कोई नहीं है।
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भवसागर पार करने का एक पंक्ति का सूत्र -- "सन्मुख मरुत अनुग्रह मेरो"।
गुरु तो स्वयं भगवान हैं, उन्हें कर्ता बनाओ, और सन्मुख मरुत यानि सामने जो ये सांसें चल रही हैं, उनसे निरंतर अजपा-जप करो। अजपा-जप क्या है? --
"सोहमस्मि इति बृत्ति अखंडा। दीप सिखा सोइ परम प्रचंडा॥
आत्म अनुभव सुख सुप्रकासा। तब भव मूल भेद भ्रम नासा॥"
भावार्थ - 'सोऽहमस्मि' (वह ब्रह्म मैं हूँ) यह जो अखंड (तैलधारावत कभी न टूटने वाली) वृत्ति है, वही (उस ज्ञानदीपक की) परम प्रचंड दीपशिखा (लौ) है। (इस प्रकार) जब आत्मानुभव के सुख का सुंदर प्रकाश फैलता है, तब संसार के मूल भेद रूपी भ्रम का नाश हो जाता है,॥
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सार की बात -- अपने परमात्व-तत्व में स्थिति ही भवसागर को पार करना है। यदि मेरी बात समझ में नहीं आई है तो किसी उच्च कोटि के संत-महात्मा के समक्ष बैठकर बड़ी विनम्रता से उनसे ज्ञान प्राप्त करें।
ॐ तत्सत् !! ॐ स्वस्ति !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१३ जुलाई २०२१

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