(५ वर्ष पुराना एक संशोधित लेख पुनर्प्रस्तुत है)
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हमारे जीवन में एक अंतहीन भागदौड़, खालीपन, तनाव, असुरक्षा, अशांति, असंतुष्टि और असत्य का अंधकार क्यों छा जाता है? हमारे जीवन में एक अंतहीन खोखलापन क्यों है? हमारी सांसारिक उपलब्धियाँ हीं हमारे व्यक्तिगत, पारिवारिक और सामाजिक जीवन में तनाव और कष्टों का कारण क्यों बन जाती हैं? इतना पारिवारिक कलह, तनाव, लड़ाई-झगड़े, मिथ्या आरोप-प्रत्यारोप, अवसादग्रस्तता और आत्महत्या,आदि आदि !! -- लगता है सारा सामाजिक ढाँचा ही खोखला हो गया है।
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सब कुछ होते हुए भी जीवन में एक शुन्यता और पीड़ा क्यों है? यह पीड़ा तभी होती है जब हम अपनी आत्मा यानि स्वयं को भूल कर इस संसार में सुख ढूंढते हैं। अन्य कोई कारण नहीं है। यह मेरा अपना निजी अनुभव है। जब मैं स्वयं से दूर हो जाता हूँ, तब सारे नर्कों की घोर पीड़ायें मुझ पर टूट पड़ती हैं।
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सुख की अनुभूति मुझे तो सिर्फ अपने आराध्य परमशिव के ध्यान में ही मिलती हैं, अन्यत्र कहीं भी नहीं।
मेरे आराध्य परमशिव -- सर्वव्यापी, अनंत, पूर्ण, परम कल्याणकारी और परम चैतन्य हैं। वे मेरे कूटस्थ हृदय में नित्य निरंतर बिराजमान हैं।
सृष्टि के सर्जन-विसर्जन की क्रिया उन का नृत्य है,
उनके माथे पर चन्द्रमा -- कूटस्थ ज्योतिर्मय ब्रह्म का,
उनके गले में सर्प -- कुण्डलिनी महाशक्ति का,
उन की दिगंबरता -- उनकी सर्वव्यापकता का,
उन की देह पर भस्म -- उनके वैराग्य का,
उन के हाथ में त्रिशूल -- त्रिगुणात्मक शक्तियों के स्वामी होने का,
उन के गले में विष -- स्वयं के अमृतमय होने का,
उन के माथे पर गंगा जी -- समस्त ज्ञान का प्रतीक है, जो निरंतर प्रवाहित हो रही है। अपनी जटाओं पर उन्होंने सारी सृष्टि का भार ले रखा है| उन के नयनों से अग्निज्योति की छटाएँ निकल रही हैं। वे मृगचर्मधारी और समस्त ज्ञान के स्त्रोत हैं। वे ही मेरे परात्पर परमेष्ठी सदगुरु हैं। मेरी चित्तवृत्तियाँ उन्हीं को समर्पित हैं।
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हे मेरे कुटिल मन, ऐसे भगवान परमशिव को छोड़कर तूँ क्यों संसार के पीछे भाग रहा है? वहाँ तुझे कुछ भी नहीं मिलेगा। तूँ उन परमशिव का निरंतर स्मरण और ध्यान कर। इस आयु में तुझे अन्य किसी कर्म की क्या आवश्यकता है? ॐ तत्सत् !
कृपा शंकर
३ अगस्त २०१७
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