गुरु-पूर्णिमा पर गुरु-रूप में परमात्मा की अनंत सर्वव्यापक संपूर्णता को नमन ---
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आज आषाढ़-पूर्णिमा को गुरु-पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है। इसे जो भी संप्रदाय या संस्था जिस भी रूप में मनाते हैं, उस से मेरी कोई असहमति नहीं है। श्रद्धानुसार सबके अपने-अपने विचार हैं। मेरे भी अपने स्वयं के अनुभवजन्य विचार औरों से कुछ हट कर हैं, जिन पर मैं दृढ़ हूँ।
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मेरी पूर्ण आस्था अपनी गुरु-परंपरा पर है, जिस में मुझे कणमात्र भी कोई संदेह नहीं है। लेकिन अब किसी भी तरह की कोई पृथकता का बोध नहीं रहा है। ध्यान के समय, मैं अपने में, गुरु में, और परमात्मा में कोई भेद नहीं पाता। इसलिए कोई बाहरी पूजा अब संभव नहीं रही है। कूटस्थ ही गुरु है, कूटस्थ ही परमात्मा है, और ध्यान में मैं स्वयं भी कूटस्थ में ही समाहित हो जाता हूँ। अतः कूटस्थ पर ध्यान ही मेरी गुरु-पूजा है। परमात्मा की ऊंची से ऊंची परिकल्पना जो मुझे समझ में आती है, वह है - परमशिव की। मैं उन्हें समय समय पर अन्य भी अनेक नामों से संबोधित करता हूँ, लेकिन कहीं कोई भेद नहीं है। इसमें छिपाने को कुछ भी नहीं है। कोई इसे अज्ञान कहे, या अहंकार कहे, या मूर्खता कहे, यह उनकी अपनी समस्या है, मेरी नहीं। तत्व-रूप में मेरे गुरु, और परमात्मा, मुझसे एक हैं।
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आप सब परमात्मा की सर्वश्रेष्ठ और सर्वोच्च अभिव्यक्तियाँ हैं, अतः आप सब महान आत्माओं को नमन! ॐ तत्सत् !! ॐ स्वस्ति !!
कृपा शंकर
२४ जुलाई २०२१
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