Thursday 5 August 2021

भगवान शिव अपनी देह में भस्म क्यों लगाते हैं? --- (संशोधित/पुनर्प्रस्तुत लेख)

 

भगवान शिव अपनी देह में भस्म क्यों लगाते हैं? --- (संशोधित/पुनर्प्रस्तुत लेख)
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भगवान शिव तो समस्त जगत के स्वामी हैं, लेकिन वे अपनी देह में भस्म ही रमाते हैं, क्योंकि भस्म --वैराग्य की प्रतीक है। एक पुराणोक्त कथा है कि मतिहीन कामदेव ने ध्यानस्थ भगवान शिव को कामोद्दीप्त करने के लिए कामवाण चलाया था, जिस से शिव की समाधी भंग हुई और उनकी क्रोधाग्नि से कामदेव जल कर भस्म हो गया। कामदेव की पत्नी रति के करुण विलाप से द्रवित होकर आशुतोष भगवान शिव ने कामदेव के शरीर की भस्म को अपने शरीर पर लेप लिया और कामदेव को पुनर्जीवित कर दिया। मनोभव यानि मन से उत्पन्न होने वाले कंदर्प यानि कामदेव की भस्म को अपनी देह पर रमाकर भगवान शिव ने सस्नेह घोषणा की कि 'आज से भक्त/अभक्त सबके देहावाशेषों की भस्म ही मेरा श्रेष्ठ भूषण होगी।'
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शैव ग्रंथों में लिखा है कि --- भस्म, त्रिपुंड एवं रुद्राक्षमाला धारण किये बगैर शिवपूजा उतनी फलदायिनी नहीं होती। इसीलिए शिवभक्त भस्म, त्रिपुंड और रुद्राक्ष माला धारण करते हैं। तपस्वी साधू-संत ठंडी और गर्मी से बचाव के लिए भी भस्म लेपन करते हैं। भस्म --- त्याग तपस्या और वैराग्य का प्रतीक है। रुद्रयामल तंत्र के अनुसार यह अग्नि-स्नान है जो भगवन शिव को सर्वप्रिय है। भस्मलेप को अग्नि-स्नान माना जाता है। यामल तंत्र के अनुसार सात प्रकार के स्नानों में अग्नि-स्नान सर्वश्रेष्ठ है। भस्म देह की गन्दगी को दूर करता है। भगवान शिव ने अपने लिए आग्नेय स्नान को चुन रखा है।
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भस्म का आध्यात्मिक अर्थ बहुत गहन है। जिसने काम वासना और अहंकार से मुक्त होकर अपनी घनीभूत प्राण चेतना यानि कुण्डलिनी को जागृत कर गुरुकृपा से आज्ञाचक्र का भेदन कर सहस्त्रार में प्रवेश कर लिया है वह भस्मधारी है। वही शिवमय होने का पात्र है। यही है शिव जी के भस्म धारण का रहस्य।
(तंत्रागमों में भस्म के बारे में और भी कई बातें है जिनका संबंध साधनाओं से है। उन्हें यहाँ लिखने का कोई औचित्य नहीं है।)
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भस्म बनाने की विधि ---
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भस्म सिर्फ देसी गाय के शुद्ध गोबर से ही बनती है। इसकी विधि यह है कि देसी गाय जब गोबर करे तब भूमि पर गिरने से पहिले ही उसे शुद्ध पात्र या बांस की टोकरी में एकत्र कर लें और स्वच्छ शुद्ध भूमि पर या बाँस की चटाई पर थाप कर कंडा (छाणा) बना कर सुखा दें। सूख जाने पर उन कंडों को इस तरह रखें कि उनके नीचे शुद्ध देसी घी का एक दीपक जलाया जा सके। उस दीपक की लौ से ही वे कंडे पूरी तरह जल जाने चाहियें। जब कंडे पूरी तरह जल जाएँ तब उन्हें एक साफ़ थैले में रखकर अच्छी तरह कूट कर साफ़ मलमल के कपडे में छान लें। कपड़छान हुई भस्म को किसी पात्र में इस तरह रख लें कि उसे सीलन नहीं लगे। भस्म तैयार है। पूजा से पूर्व माथे पर और अपनी गुरु परम्परानुसार देह के अन्य अंगों पर भस्म से त्रिपुंड लगाएँ।
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ॐ स्वस्ति !! शिवमस्तु !! ॐ नमः शिवाय !!
कृपा शंकर
४ अगस्त २०२१

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