Thursday 5 August 2021

वास्तविक स्वतन्त्रता सिर्फ परमात्मा में है, अन्यत्र कहीं भी नहीं ---

वास्तविक स्वतन्त्रता सिर्फ परमात्मा में है, अन्यत्र कहीं भी नहीं है। पिंजरे में बँधे पक्षी, बैलगाडी में जुड़े बैल, और हमारे में कोई अंतर नहीं है। हम एक बैल की तरह हैं जो बैलगाड़ी में जुड़ा हुआ है। जिनको हम अपना प्रियजन या पारिवारिक सगे-संबंधी कहते हैं, वे डंडे से मार-मार कर हमें हाँक रहे हैं। हम उनकी मार खाकर और उनकी इच्छानुसार चलकर बहुत प्रसन्न हैं और इसे अपना कर्त्तव्य मान रहे हैं।

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हम इस संसार में हैं, इसके मुख्यतः दो ही कारण हैं -- राग और द्वेष। द्वेष की शक्ति राग से बड़ी है। किसी को किसी के प्रति भी द्वेष यानि घृणा नहीं रखनी चाहिए। जिससे भी हम द्वेष रखते हैं, हो सकता है अगले जन्म उसी के घर जन्म लेना पड़े। जिस भी परिस्थिति और वातावरण से हमें द्वेष हैं, वही वातावरण और परिस्थिति हमें दुबारा मिलती है। युद्धभूमि में शत्रु का संहार करो, लेकिन उसके प्रति घृणा बिलकुल भी न हो। परमात्मा को कर्ता बनाकर सब कार्य करो, कर्तव्य निभाते हुए भी अकर्ता बने रहो। सारे कार्य और उनके फल परमात्मा को समर्पित कर दो, फल की अपेक्षा या कामना मत करो। कामना ही राग है, जो बापस हमें इस संसार में ले आती है। 'अपेक्षा' भी राग का एक दूसरा रूप है। किसी से कोई अपेक्षा भी नहीं होनी चाहिए।
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कामनाओं के पीछे आजकल लोग यह तर्क देते हैं कि कामनाएँ ही नहीं होंगी तो मनुष्य जाति में कोई प्रगति नहीं होगी। उनके अनुसार हर नए अविष्कार और हर अच्छे कार्य के पीछे कोई न कोई कामना होती है।
इच्छा-शक्ति और कामना में अंतर है। निरंतर विकास की इच्छा किसी बंधन में नहीं डालती, लेकिन हर कामना बंधनकारी होती है। बंधन में बंधना कोई दुर्भाग्य नहीं है, दुर्भाग्य है -- मुक्त न होने का प्रयास करना।
ॐ तत्सत् !!
१५ जुलाई २०२१

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