"तमोगुण से मुक्त कैसे हों?" ---
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यह हमारी सब से बड़ी समस्या है। तमोगुण न तो भगवान की भक्ति करने देता है, व न कोई सांसारिक सफलता प्राप्त करने देता है, और अंततः हमें नर्क-कुंड में डालता है। गीता में भगवान कहते हैं --
"ऊर्ध्वं गच्छन्ति सत्त्वस्था मध्ये तिष्ठन्ति राजसाः।
जघन्यगुणवृत्तिस्था अधो गच्छन्ति तामसाः॥१४:१८॥"
अर्थात् ... सतोगुण में स्थित जीव स्वर्ग के उच्च लोकों को जाता हैं, रजोगुण में स्थित जीव मध्य में पृथ्वी-लोक में ही रह जाते हैं, और तमोगुण में स्थित जीव पशु आदि नीच योनियों में नर्क को जाते हैं॥
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हम अपनी मनःस्थिति व भावावेशों से कई बार क्रोधित या दुखी हो जाते हैं। इसका एकमात्र कारण है -- अपेक्षाओं की पूर्ति न होने व असहायता की भावना से उत्पन्न कुंठा। इंद्रिय सुखों में अत्यधिक लिप्त होने से मानस रुग्ण हो जाता है। फिर जरा सी भी अपेक्षा की पूर्ति न होने से क्रोध या निराशा आने लगती है। कई बार तो वह निराशा इतनी अधिक होती है कि व्यक्ति आत्म-हत्या की सोचने लगता है। इस तरह के अवसाद ग्रस्त व्यक्ति को तुरंत मनोवैज्ञानिक सहायता की आवश्यकता होती है। जब भी ऐसी मनःस्थिति उत्पन्न हो तब हमें उसका मानसिक रूप से प्रतिरोध करना चाहिए। इसके लिए भगवान श्रीकृष्ण द्वारा गीता में सिखाई गयी निःस्पृहता का अभ्यास करना होगा। यह एक साधना का विषय है अतः गीता का निरंतर गहन अध्ययन और नित्य नियमित ध्यान साधना करनी चाहिए।
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परमात्मा की कृपा सब पर बनी रहे। प्राण-तत्व के रूप में परमात्मा सभी जीवों और जड़-चेतन में व्याप्प्त है। उन की आरोग्यकारी उपस्थिति, सभी के देह, मन और आत्मा में प्रकट हो। सभी का कल्याण हो। ॐ नमः शिवाय !! ॐ तत्सत् !
३ अगस्त २०२१
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