चीन ने तिब्बत पर अधिकार किया, इसका असली कारण वहाँ की अथाह जल राशि, और भूगर्भीय संपदा है, जिसका अभी तक दोहन नहीं हुआ है। तिब्बत में कई ग्लेशियर हैं, और कई विशाल झीलें हैं। भारत की तीन विशाल नदियाँ -- ब्रह्मपुत्र, सतलज, और सिन्धु -- तिब्बत से आती हैं| गंगा में आकर मिलने वाली कई छोटी नदियाँ भी तिब्बत से आती हैं। चीन इस विशाल जल संपदा पर अपना अधिकार रखना चाहता है इसलिए उसने तिब्बत पर अधिकार किया। हो सकता है भविष्य में वह इस जल-धारा का प्रवाह चीन की ओर मोड़ दे। इस से भारत में तो हाहाकार मच जाएगा पर चीन का एक बहुत बड़ा क्षेत्र हरा भरा हो जाएगा।
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चीन का सीमा विवाद उन्हीं पड़ोसियों से रहा है जहाँ सीमा पर कोई नदी है, अन्यथा नहीं। रूस से उसका सीमा विवाद उसूरी और आमूर नदियों के जल पर था। ये नदियाँ अपना मार्ग बदलती रहती हैं, कभी चीन में कभी रूस में। उन पर नियंत्रण को लेकर दोनों देशों की सेनाओं में एक बार बड़ी झड़प भी हुई थी।
वियतनाम में चीन से युआन नदी आती है जिस पर हुए विवाद के कारण चीन और वियतनाम में सैनिक युद्ध भी हुआ है।
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वर्तमान चीन ने भारत से कोई सीमा समझौता नहीं किया क्योंकि भारत की पूर्ववर्ती सभी सरकारें चीन से डरती थीं। चीन ने भारत को एक डरपोक व दब्बू देश समझ रखा है। चीन की सीमा भारत से कहीं पर भी नहीं लगती थी। चीन और भारत के मध्य तिब्बत एक शक्तिशाली स्वतंत्र देश था। १९४७ में अंग्रेज जब भारत से गए उस समय भी तिब्बत भारत द्वारा संरक्षित एक स्वतंत्र देश था। भारत के प्रथम प्रधानमंत्री का झुकाव मार्क्सवाद के प्रति था और वे रूस के तानाशाह स्टालिन से बहुत अधिक प्रभावित थे, और उसकी हर बात मानते थे। स्टालिन के कहने पर भारत के प्रथम प्रधानमंत्री ने ब्रिटेन से अनुमति लेकर तिब्बत चीन को सौंप दिया या बेच दिया। चीनी सेना जब तिब्बत में प्रवेश कर रही थी तब उसका पूरा Logistic Support यानि खाने-पीने आदि की व्यवस्था भारत ने ही की। चीनी सेना को खाने के लिए चावल व मांस की पूरी व्यवस्था भारत सरकार ने अपनी जनता को धोखे में रखकर की। बाद में जब चीन ने देखा कि तत्कालीन भारत की सरकार सिर्फ बातुनी और कागजी शेर है जिसमें कोई दम नहीं है, तब उसने लद्दाख का बहुत बड़ा क्षेत्र छीन लिया और युद्ध में भारत को हरा दिया।
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हमने तिब्बत पर चीन को अधिकार करने दिया, यह हमारी बहुत बड़ी भूल थी। माओ ने तिब्बत पर अधिकार कर लिया, अक्सा चान (अक्साई चिन) भारत से छीन लिया -- भारत का नेतृत्व इस बात को बहुत देरी से समझा, पर तब तक बहुत देर हो चुकी थी। यदि भारतीय प्रधानमंत्री इस बात को समय पर समझ जाते तो तिब्बत पर कभी भी चीन का अधिकार नहीं होने देते।
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चीन का राष्ट्रपति माओ भी स्टालिन का चेला था और स्टालिन की सहायता से ही सत्ता में आया था। स्टालिन की मृत्यु के बाद भी भारत की हर सरकार रूस की पिछलग्गू रही। चीन को पता था कि भारत से एक न एक दिन उसका युद्ध अवश्य होगा अतः उसने भारत को घेरना शुरू कर दिया। बंगाल की खाड़ी में कोको द्वीप इसी लिए उसने म्यांमार से लीज पर लेकर उस पर अपना सैनिक अड्डा बना लिया। अब तो उसने श्रीलंका में हम्बनटोटा बन्दरगाह और हवाईअड्डा लीज पर लेकर भारत के विरुद्ध अपना सैनिक अड्डा बना लिया है। इसी तरह उसने बलोचिस्तान के ग्वादर बन्दरगाह में, और अदन की खाड़ी से लालसागर में घुसते ही दक्षिण दिशा में जिबूती में अपने सैनिक अड्डे बना लिए हैं। इन सब स्थानों से चीन भारत पर आक्रमण कर सकता है।
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भारत को तिब्बत पर अपना अधिकार नहीं छोड़ना चाहिए था। भारत की सेना चीन के मुक़ाबले बहुत अधिक शक्तिशाली थी। आजादी के बाद भारत ने भारत-तिब्बत सीमा पर कभी भौगोलिक सर्वे का काम भी नहीं किया जो बहुत पहिले कर लेना चाहिए था। बिना तैयारी के चीन से युद्ध भी नहीं करना चाहिए था। जब युद्ध ही किया तो वायु सेना का प्रयोग क्यों नहीं किया? चीन की तो कोई वायुसेना तिब्बत में थी ही नहीं।
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भारत-चीन में सदा तनाव बना रहे इस लिए अमेरिका की CIA ने भारत में दलाई लामा को घुसा दिया| वर्त्तमान में तनाव तो दलाई लामा को लेकर ही है। दलाई लामा चीन की दुखती रग है| चीन भारत से लड़ाई इसलिए नहीं कर रहा है क्योंकि भारत से व्यापार में उसे बहुत अधिक लाभ हो रहा है। वह भारत से व्यापार बंद नहीं करना चाहता। भारत भी अपनी आवश्यकता के बहुत सारे सामानों के लिए चीन पर निर्भर है। पीने के पानी की दुनियाँ में दिन प्रतिदिन कमी होती जा रही है। भारत और चीन में युद्ध होगा तो वह पानी और खनिज संपदा के लिए होगा।
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विश्व के सभी देशों को मिलकर चीन पर आक्रमण करना चाहिए और द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात रूस के तानाशाह जोसेफ स्टालिन की सहायता से चीन ने जिन आठ स्वतंत्र देशों पर अधिकार कर लिया था, उन को स्वतंत्र करा कर चीन को उसकी मूल सीमा में सीमित कर देना चाहिए। ये आठ देश हैं -- मंचूरिया, डोंगबेइ, इन्नर मंगोलिया, निंगशिया, गंसू, क़्वींघाई, सिंजियांग, और तिब्बत।
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ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर
८ जुलाई २०२१
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