Thursday 5 August 2021

हम किस की उपासना करें? ---

हम किस की उपासना करें? ---

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भगवान ही एकमात्र सत्य हैं। यदि हृदय में सत्यनिष्ठा होगी, तभी इस प्रश्न का उत्तर अपने अंतर से ही मिल सकता है, अन्यथा नहीं। इस विषय पर श्रीमद्भगवद्गीता के पंद्रहवें अध्याय "पुरुषोत्तम योग" का गंभीर स्वाध्याय एक बार कर लेना चाहिए। शरणागत होकर हम खोजें कि वह पुरुषोत्तम कौन है? उन पुरुषोत्तम पुराण-पुरुष की ही हम उपासना करें। वे ही परमशिव हैं, और वे ही विष्णु हैं।
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जितना हम भगवान को पाने के लिए व्याकुल हैं, भगवान भी हमें पाने के लिए उतने ही व्याकुल हैं। लेकिन सृष्टि के संचालन के लिए अपनी स्वयं की बनाई हुई प्रकृति के नियमों को वे भी नहीं तोड़ते। हमें भगवान नहीं मिलते, इसका एकमात्र कारण सत्यनिष्ठा का अभाव है।
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भगवान कहते हैं ---
"ततः पदं तत्परिमार्गितव्य यस्मिन्गता न निवर्तन्ति भूयः।
तमेव चाद्यं पुरुषं प्रपद्ये यतः प्रवृत्तिः प्रसृता पुराणी॥१५:४॥"
"निर्मानमोहा जितसङ्गदोषा अध्यात्मनित्या विनिवृत्तकामाः।
द्वन्द्वैर्विमुक्ताः सुखदुःखसंज्ञैर्गच्छन्त्यमूढाः पदमव्ययं तत्॥१५:५॥"
(तदुपरान्त) उस पद का अन्वेषण करना चाहिए जिसको प्राप्त हुए पुरुष पुन: संसार में नहीं लौटते हैं। "मैं उस आदि पुरुष की शरण हूँ, जिससे यह पुरातन प्रवृत्ति प्रसृत हुई है"॥
जिनका मान और मोह निवृत्त हो गया है, जिन्होंने संगदोष को जीत लिया है, जो अध्यात्म में स्थित हैं जिनकी कामनाएं निवृत्त हो चुकी हैं और जो सुख-दु:ख नामक द्वन्द्वों से विमुक्त हो गये हैं, ऐसे सम्मोह रहित ज्ञानीजन उस अव्यय पद को प्राप्त होते हैं॥
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ॐ तत्सत् !!
१४ जुलाई २०२१

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