Thursday 27 July 2017

मल, विक्षेप और आवरण .....

मल, विक्षेप और आवरण .....
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मल >>>>> हमारे पूर्व जन्मों के किये हुए सारे संचित पाप और पुण्य कर्म जो हमारे संस्कारों में परिवर्तित हो गए हैं .... वे मल दोष हैं| हमें उन से मुक्त होना ही होगा| बंधन तो बंधन ही हैं, चाहे वे स्वर्ण के हों या लौह के| बन्धनों से तो मुक्त होना ही होगा|
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विक्षेप >>>>> परमात्मा को परमात्मा न जानकर उसकी रचना यानि संसार को ही जान रहे हैं| आकारों के सौन्दर्य से हम इतने मतिभ्रम हैं कि मूल तत्व को विस्मृत कर गए हैं ..... यह विक्षेप दोष है|
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आवरण >>>>> हम अपने सच्चिदानंद स्वरुप को भूलकर स्वयं को यह देह मान बैठे हैं, यह आवरण दोष है|
मन को एकाग्र कर के सच्चिदानंद पर ध्यान करने से ही ये सब दोष दूर होते हैं| शिष्यत्व की पात्रता होते ही इसके लिए मार्गदर्शन परमात्मा स्वयं ही श्रौत्रीय ब्रह्मनिष्ठ गुरु के रूप में करते हैं|
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ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
२४ जुलाई २०१७

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