परमात्मा के मार्ग की सबसे बड़ी बाधा मनुष्य की निम्न-प्रकृति है जो
अवचेतन मन में राग-द्वेष और अहंकार के रूप में व्यक्त होती है| इससे निपटना
मनुष्य के वश की बात नहीं है, चाहे कितनी भी दृढ़ इच्छा शक्ति और संकल्प
हो|
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जहाँ राग-द्वेष व अहंकार होगा वहीं काम, क्रोध और लोभ भी स्वतः ही बिना बुलाये आ जाते हैं| ये मनुष्य को ऐसे चारों खाने चित्त पटकते हैं कि वह असहाय हो जाता है|
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बिना वीतराग हुए आध्यात्मिक प्रगति असम्भव है जिस के लिए परमात्मा की कृपा अत्यंत आवश्यक है| बिना प्रभुकृपा के एक कदम भी आगे बढना असम्भव है| यहीं भगवान की भक्ति, शरणागति और समर्पण काम आते हैं|
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जहाँ राग-द्वेष व अहंकार होगा वहीं काम, क्रोध और लोभ भी स्वतः ही बिना बुलाये आ जाते हैं| ये मनुष्य को ऐसे चारों खाने चित्त पटकते हैं कि वह असहाय हो जाता है|
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बिना वीतराग हुए आध्यात्मिक प्रगति असम्भव है जिस के लिए परमात्मा की कृपा अत्यंत आवश्यक है| बिना प्रभुकृपा के एक कदम भी आगे बढना असम्भव है| यहीं भगवान की भक्ति, शरणागति और समर्पण काम आते हैं|
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय | ॐ ॐ ॐ ||
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