Sunday, 19 June 2016

गायत्री मन्त्र पर परिचयात्मक एक लघु लेख .

प्राचीन भारत ने ही विश्व को सब कुछ दिया| दुर्भाग्य से भारत के सेकुलरवादी लोग भारत के प्राचीन गौरव को छिपा रहे हैं| शिक्षा, संस्कृति, स्वास्थ्य, चिकित्सा, समाजविज्ञान, कृषि और पशुपालन सब प्राचीन भारत की ही देन है| प्राचीन काल से ही समस्त भौतिक और आध्यात्मिक ज्ञान भारत ने ही विश्व को दिया था अतः भारत जगद्गुरु था| भारत के लोग देवता कहलाते थे|
इन सब के मूल में थी भारत की संस्कृति| भारतीय संस्कृति को भी शक्ति कहाँ से मिलती थी इसको यदि एक ही शब्द में समझना चाहें तो वह है ..... "गायत्री मन्त्र" ....| भारतीय संस्कृति को समझने के लिए गायत्री मन्त्र को समझना आवश्यक है| गायत्री मन्त्र ही तत्व-ज्ञान और ब्रह्म-विद्या का स्त्रोत है|
गायत्री और सावित्री एक ही ब्रह्मशक्ति के नाम हैं| इस संसार में सत-असत जो कुछ हैं, वह सब ब्रह्मस्वरूपा गायत्री ही है| जिस प्रकार पुष्पों का सार मधु, दूध का सार घृत और रसों का सार पय है, उसी प्रकार गायत्री मन्त्र समस्त वेदों का सार है| गायत्री वेदों की जननी और पाप-विनाशिनी हैं, गायत्री-मन्त्र से बढ़कर अन्य कोई पवित्र मन्त्र पृथ्वी पर नहीं है| इस मन्त्र के देवता 'सविता' हैं| गायत्री-मन्त्र सभी वैदिक संहिताओं में प्राप्त होता है| गायत्री मन्त्र के दर्शन अनेक ऋषियों को हुए| गायत्री मन्त्र अनादि काल से है| इस पर बहुत अधिक शोध की आवश्यकता है|
वेद अपौरुषेय हैं, उन्हें बिना परमात्मा की कृपा के नहीं समझा जा सकता|
प्राचीन ऋषि लोग गायत्री मन्त्र को जपने से पूर्व ... भू र्भुवः स्वः , इन तीन व्याहृतियों को उच्चारित कर लेते थे| इन्हें महाव्याहृति भी कहा जाता है| ऋषिगण ॐ कार का उच्चारण कर उसी में समाहित (ध्यानमग्न) हो जाते थे|
इसलिए भगवान मनु ने 'स प्रणव व्याहृति' के संग गायत्री पाठ का परामर्श दिया है जिसका अन्य भी शास्त्रकारों ने समर्थन किया है|

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