Thursday 13 January 2022

हमारी जीवन चेतना, स्थायी रूप से प्रकृति से परे परमशिव में स्थित हो, हम सब परमशिव बनें ---

 हमारी जीवन चेतना, स्थायी रूप से प्रकृति से परे परमशिव में स्थित हो, हम सब परमशिव बनें ---

.
आध्यात्मिक दृष्टि से ध्यान में हर साँस के साथ हमारा उत्तरायण और दक्षिणायण चलता रहता है| हमारी सूक्ष्म देह में मूलाधारचक्र -- दक्षिण दिशा; और सहस्त्रारचक्र -- उत्तर दिशा है| कूटस्थ ज्योतिर्मय ब्रह्म -- सूक्ष्मजगत के सवितादेव भगवान भुवन-भास्कर हैं|
.
गुरु महाराज की परम कृपा से गहरे ध्यान में, जब हर श्वास के साथ घनीभूत प्राणऊर्जा (कुंडलिनी), सुषुम्ना नाड़ी की ब्राह्मीउपनाड़ी में एक विशेष ध्वनि और विधि से सभी चक्रों को भेदती हुई ऊपर उठकर कूटस्थ तक जाती है, यह मेरा उत्तरायण है|
.
वहाँ से वही कुंडलिनी जब एक दूसरी ध्वनि और विधि के साथ सब चक्रों को भेदती हुई नीचे बापस मूलााधार पर लौटती है, तब मेरा दक्षिणायण है|
यह क्रिया हर श्वास-प्र्श्वास के साथ चलती रहती है|
.
कभी कभी यह ब्रह्मरंध्र को भी भेदकर अनंतता के साथ मिल जाती है| जिस दिन यह अनंतता से भी परे परमशिव को स्थायी रूप से समर्पित हो जाएगी, उस दिन उसी समय मेरा जीवन धन्य और कृतार्थ हो जाएगा| यह भगवान श्रीहरिः और गुरु महाराज की परम कृपा होगी|
.
हमारा जीवन सार्थक हो| हम सब का कल्याण हो| 🌹🙏🕉🙏🌹
कूटस्थ ज्योतिर्मय ब्रह्म को नमन ! ॐ श्रीगुरुभ्यो नमः !!
कृपा शंकर
१३ जनवरी २०२१

No comments:

Post a Comment