भगवान ही एकमात्र सत्य है, बाकी सब मिथ्या है ---
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जब से यह अनुभूति हुई है कि भगवान स्वयं ही यह सारी सृष्टि बन गए है, कुछ भी लिखने योग्य विषय नहीं बचा है। भगवान ने कुछ भी नहीं बनाया है, जो कुछ भी है, वह सब वे स्वयं हैं। जब तक समर्पित होकर हम उनके साथ एक नहीं होते, तब तक यह पुनर्जन्म, जन्म-मृत्यु और सुख-दुःख का चक्र चलता रहेगा।
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हम कूटस्थ में उनकी ज्योति का निरंतर दर्शन करें, उनके नाद को निरंतर सुनें, और उनके प्रति अनन्य-अहैतुकी भक्ति को विकसित करें। मुक्ति का यही एकमात्र मार्ग है। द्वैत भाव का एकमात्र उद्देश्य है -- परमप्रेम यानि भक्ति की सिद्धि। फिर वही भक्ति अद्वैत में व्यक्त हो। भगवान ही एकमात्र सत्य है, बाकी सब मिथ्या है।
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आप सब में मैं स्वयं को नमन करता हूँ।
ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२७ नवंबर २०२३
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