Saturday, 13 September 2025

सुख अद्वैत में है, द्वैत में नहीं .....

 सुख अद्वैत में है, द्वैत में नहीं .....

सृष्टि के किसी भी भाग में सुख, शांति व सुरक्षा नहीं है, क्योंकि सृष्टि की रचना द्वैत से हुई है जिसमें सदा द्वन्द्व रहता है| "ॐ खं ब्रह्म" ... भगवान ने स्वयं को "खं" यानि आकाश-तत्व के रूप में व्यक्त किया है| जो भगवान के सपीप है, वह "सुखी" है| जो उन से दूर है वह "दुःखी" है|
मूल रूप से सारी सृष्टि एक विराट ऊर्जा-खंड है| इस ऊर्जा से अणुओं का निर्माण हुआ है| अणुओं से पदार्थ की रचना हुई है| अणुओं की संरचना को समझ कर हम सृष्टि को भी समझ सकते हैं| भगवान की शक्ति प्राण-तत्व के रूप में व्यक्त है| हम भगवान के अंश हैं और उन से जुड़कर ही सुखी हैं, और उन से दूर होकर दुःखी|
कृपा शंकर
१३ सितंबर २०२०

No comments:

Post a Comment