Monday, 18 October 2021

मेरा अस्तित्व ही भगवान की अभिव्यक्ति है। जहाँ तक भगवान की भक्ति है वह दो चरणों में होती है ---

 

मेरा अस्तित्व ही भगवान की अभिव्यक्ति है।
जहाँ तक भगवान की भक्ति है वह दो चरणों में होती है --
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(१) प्रथम चरण में हम इस शरीर में नहीं रहते। हमारी चेतना इस शरीर से सारी सृष्टि में, सारे ब्रह्मांड में फैल जाती है। सारी पृथ्वी, सारे ग्रह-उपग्रह, सारी आकाश-गंगाएँ, समस्त जड़-चेतन, और सपूर्ण सृष्टि के सारे प्राणी, --- हमारे साथ एक हो जाते हैं। कहीं कोई पृथकता नहीं है।
यह संपूर्णता ही हमारे साथ भगवान का ध्यान, स्मरण, उपासना, आराधना करती है। हम यह शरीर नहीं, भगवान की संपूर्णता हैं। जब मैं साँस लेता हूँ, तो सम्पूर्ण सृष्टि मेरे साथ साँस लेती है, मेरे साथ-साथ ही पूरी सृष्टि भगवान का स्मरण, चिंतन और ध्यान करती है। मेरी प्रार्थना उस समग्रता के द्वारा, समग्रता के लिए ही होती है।
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(२) दूसरे चरण में उपरोक्त समग्रता ही भगवान बन जाती है। भगवान अपना ध्यान, अपनी साधना स्वयं करते हैं। मेरा कोई अस्तित्व उस समय नहीं होता। एकमात्र अस्तित्व भगवान का ही होता है। सारे रूप, सारे गुण उन्हीं के हैं। एकमात्र अस्तित्ब उन्हीं का है, उनके सिवाय कोई अन्य नहीं है। अपनी प्रार्थना भी वे स्वयं, स्वयं के लिए ही करते हैं। उनके सिवाय अन्य कुछ भी नहीं है।
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मेरी साधना, उपासना और भक्ति -- मेरा निजी मामला है। इस से किसी का कुछ लेना-देना नहीं है। मुझे किसी से कुछ चाहिए भी नहीं, क्योंकि सब कुछ तो मैं ही हूँ। जहाँ तक इस शरीर का प्रश्न है, चाहे यह भूख-प्यास या बीमारी से मर जाये, लेकिन कभी किसी से कुछ भी याचना या अपेक्षा नहीं करेगा, किसी से कुछ भी नहीं माँगेगा। मैं भी इसकी मृत्यु का साक्षी ही रहूँगा। अतः कोई यह न सोचे कि मैं किसी से कुछ मांग लूँगा। मुझे किसी से कुछ भी नहीं चाहिए। मेरा अस्तित्व ही भगवान की अभिव्यक्ति है।
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सूक्ष्ण जगत से पूर्व जन्मों के मेरे गुरु मेरे ऊपर अपनी कृपा-दृष्टि रखते हुये मेरा निरंतर मार्ग-दर्शन कर रहे हैं। वे सदा हर सुख-दुख में अपनी संपूर्णता में मेरे साथ हैं। भगवान स्वयं मेरे साथ हैं। मुझे किसी से कुछ भी नहीं चाहिए।
ॐ तत्सत् !! ॐ स्वस्ति !!
कृपा शंकर
१८ अक्तूबर २०२१

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