भारत विजयी हो। जीवन में भगवत्-प्राप्ति ही सत्य-सनातन-धर्म है। यही भारत की अस्मिता और प्राण है। सत्य-सनातन-धर्म की पुनर्प्रतिष्ठा और वैश्वीकरण हो। भारत में छाया असत्य का अंधकार दूर हो। भारत ही सनातन-धर्म, और सनातन-धर्म ही भारत है। मुझे इसी जीवन में पूर्ण वैराग्य, ज्ञान, भक्ति और भगवान की प्राप्ति हो। माया का आवरण और विक्षेप सदा के लिए मुझ से दूर हो। और कुछ नहीं चाहिए।
ॐ तत्सत् !! ॐ स्वस्ति !!
कृपा शंकर
१६ अक्तूबर २०२१
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पुनश्च: :---
इस राष्ट्र में ब्रह्मतेजयुक्त ब्राह्मण जन्म लें। अस्त्र-शस्त्रों का उपयोग करने वाले कुशल तेजस्वी क्षत्रिय जन्म लें। व्यवसाय-कुशल धर्मनिष्ठ वैश्य हों और समर्पित कर्मकुशल शूद्र हों। अधिक दूध देने वाली गायें हों। अधिक बोझ ढो सकें ऐसे बैल हों। ऐसे घोड़े हों जिनकी गति देखकर पवन भी शरमा जाये। राष्ट्र को धारण करने वाली बुद्धिमान तथा रूपशील स्त्रियां हों, विजय संपन्न करने वाले महारथी हों। समय समय पर उचित वर्षा हो, वनस्पति वृक्ष और उत्तम फल हों। हमारा योगक्षेम सुखमय बने।
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धेनु द्विज ऋषि मुनि सशंकित, अवतरण हो परशुधर का।
शस्त्र-शास्त्रों से सजे फ़िर शौर्य भारतवर्ष का॥
दमन-अत्यचार पर फिर गिराएँ गाज ऐसी।
गगन कांपे धरा दहले, दामिनी दमके प्रलय सी॥
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अपने प्राणों से राष्ट्र बड़ा होता है, हम मिटते हैं तो राष्ट्र खड़ा होता है।
नित्य पूजित ब्राह्मण न हुए तो, ज्ञान बीज कहाँ से आएगा?
धरती को माँ कहकर, वसुधैव कुटुम्ब का घोष कौन दोहराएगा?
जब न्याय धर्म खतरे में हो, गाण्डीव उठाना पड़ता है।
सम्मुख हो गुरु अथवा दादा सबसे टकराना पड़ता है॥
जो चीर हरण पर मौन रहें उन सबको मरना पड़ता है।
अर्जुन को कर्ण सहोदर का भी कंठ कतरना पड़ता है॥
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मुश्किल से अवसर आया है, भारत का भाग्य बदलने का।
यों झिझक-झिझक पग धरने से वह लक्ष्य नहीं है मिलने का॥
खुलकर खेलें, जमकर जूझें, वह अनीकिनी तैयार करो।
इतिहास खड़ा सहमा ठिठका उठ अंध गुफा को पार करो॥
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हे राम के वंशजो जागो ! भीष्म की सी प्रतिज्ञा करने वाले, और कर्ण के से दानदाता अब कहाँ मिलेंगे? सदाचार से युक्त, ज्ञान की खोज में रत समाधिस्थ तपस्वी अब कहाँ हैं? इस अन्धकारी कुहू को अब तो दूर फेंको। आसुरी वृत्ति का नाश करो।
जय जननी!! जय भारत!! जय सत्य सनातन धर्म!!
सर्वप्रथम सनातन धर्म व राष्ट्र की रक्षा हो, तभी भारत देश बचेगा; अन्यथा नामांतरण भी हो सकता है -- पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफगानिस्तान।
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धर्म की रक्षा होती है - धर्माचरण से, जिसे आजकल कोई करना नहीं चाहता। समय ही खराब चल रहा है, किसी का दोष नहीं है। मेरी आस्था अब सब ओर से हट कर भगवान पर ही सिमट गई है। यह भगवान की सृष्टि है, अतः जो कुछ भी करना है, वह वे ही करेंगे। मैं तो निमित्तमात्र हूँ। मेरी भूमिका यज्ञ में एक यजमान की भूमिका से अधिक नहीं है। ॐ तत्सत् !! ॐ स्वस्ति !!
१९ अक्तूबर २०२१