मेरे इष्टदेव कौन हैं? ---
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यह भगवान की समस्या है, मेरी नहीं। यह एक ऐसा प्रश्न है जिसका कोई उत्तर मेरे पास नहीं है। क्या इष्ट देव होना अनिवार्य है? यह भगवान की मर्जी, वे किसी भी रूप में आ जाएँ। सारे रूप उन्हीं के हैं, सब कुछ वे ही हैं। यह मैंने भगवान पर छोड़ दिया है कि वे जिस भी रूप में आना चाहें आयें, उनका स्वागत है।
वे कभी परमशिव के रूप में आते है और छा जाते हैं, कभी श्रीसीताराम के रूप में, कभी श्रीलक्ष्मीनारायण के रूप में, कभी श्रीराधाकृष्ण के रूप में, और कभी त्रिभंग मुद्रा में वासुदेव भगवान श्रीकृष्ण के रूप में आते हैं।
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वे चाहे जिस रूप में आयें, उनकी मर्जी, मेरी ओर से उनका स्वागत है। मेरे अंतरतम हृदय का रहस्य तो रहस्य ही रहेगा, क्योंकि वह सिर्फ भगवान के लिये आरक्षित है, और किसी को नहीं बता सकता।
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जिस समाज को मैं अपना समझता था उस समाज में तो मेरे साथ दुर्व्यवहार और अन्याय ही हुआ है, जिसकी पीड़ा तो सदा मेरे हृदय में ही रहेगी। किसी की मैं न तो आलोचना करूंगा, और न ही निंदा। भगवान से मुझे पूरा प्रेम मिला है, और भगवान ने मुझे अपने हृदय में स्थान दिया है, यही मेरे जीवन की एकमात्र उपलब्धि है।
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आप सब में हृदयस्थ भगवान को नमन !! ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर
१० अक्तूबर २०२१
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