हम भगवान के पीछे-पीछे नहीं भागते, वे ही हमारे साथ-साथ, पीछे-पीछे और आगे-आगे चलते हैं| हमारे में इतनी शक्ति नहीं है कि उन की दुस्तर माया को पार कर सकें, अतः हम जहाँ भी हैं, वहाँ भगवान स्वयं ही चले आते हैं| जैसे एक पिता अपने पुत्र के बिना नहीं रह सकता वैसे ही भगवान भी हमारे बिना नहीं रह सकते| वे निरंतर हमारा ध्यान रखते हैं| इस जीवन को हम नहीं, वे ही जी रहे हैं| दुःख मे, सुख में, सदा वे हमारे साथ हैं| जब भी उन्हें हाथ थमाते हैं, वे हाथ पकड़ते है|
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गीता में उनके वचन हैं ...
"अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जनाः पर्युपासते| तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम्||९:२२||"
अर्थात अनन्य भाव से मेरा चिन्तन करते हुए जो भक्तजन मेरी ही उपासना करते हैं, उन नित्ययुक्त पुरुषों का योगक्षेम मैं वहन करता हूँ||
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"मच्चित्तः सर्वदुर्गाणि मत्प्रसादात्तरिष्यसि| अथ चेत्त्वमहङ्कारान्न श्रोष्यसि विनङ्क्ष्यसि||१८:५८||"
अर्थात मच्चित्त होकर तुम मेरी कृपा से समस्त कठिनाइयों (सर्वदुर्गाणि) को पार कर जाओगे और यदि अहंकारवश (इस उपदेश को) नहीं सुनोगे, तो तुम नष्ट हो जाओगे||
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"अपि चेत्सुदुराचारो भजते मामनन्यभाक्| साधुरेव स मन्तव्यः सम्यग्व्यवसितो हि सः||९:३०||"
अर्थात यदि कोई अतिशय दुराचारी भी अनन्यभाव से मेरा भक्त होकर मुझे भजता है तो वह साधु ही मानने योग्य है, क्योंकि वह यथार्थ निश्चय वाला है||
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मेरे में इतनी सामर्थ्य भी नहीं है है कि इस शरीर के अंत समय में भगवान का स्मरण कर सकूँ| भगवान स्वयं ही मेरा स्मरण करेंगे| यह देह तो चिता पर भस्म हो जाएगी, पर वे मुझे निरंतर अपने हृदय में रखेंगे|
"वायुरनिलममृतमथेदं भस्मांतं शरीरम्| ॐ क्रतो स्मर कृतं स्मर क्रतो स्मर कृतं स्मर||" (ईशावास्योपनिषद मंत्र १७)
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उनके चरणों में आश्रय माँगा था, पर उन्होंने तो अपने हृदय में ही दे दिया है| अब उनको छोड़कर कोई स्थान भी नहीं बचा है| अब कहीं भी नहीं जाना है| उनका साथ ही शाश्वत है|
ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२० अक्टूबर २०२०
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