भगवान से उनके परमप्रेम के अतिरिक्त अन्य कुछ भी मत मांगो। निरंतर उनका स्मरण ही सर्वश्रेष्ठ सत्संग और जपयज्ञ है। अपनी चेतना को सदा उत्तरा-सुषुम्ना (आज्ञाचक्र और सहस्त्रार के मध्य) में रखो। कुसंग का सदा त्याग, और गीता का नित्य स्वाध्याय करो। यही सन्मार्ग है।
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"सोइ जानहि जेहि देहु जनाई, जानत तुमहिं तुमहि हुई जाई।"
"धर्मस्य तत्त्वं निहितं गुहायाम्।"
अपनी श्रद्धा, विश्वास और आस्था को विचलित न होने दें, क्योंकि श्रद्धावान को ही शांति मिलती है। भगवान कहते हैं --
"श्रद्धावाँल्लभते ज्ञानं तत्परः संयतेन्द्रियः।
ज्ञानं लब्ध्वा परां शान्तिमचिरेणाधिगच्छति॥४:३९॥"
अर्थात - "श्रद्धावान् तत्पर और जितेन्द्रिय पुरुष ज्ञान प्राप्त करता है। ज्ञान को प्राप्त करके शीघ्र ही वह परम शान्ति को प्राप्त होता है॥"
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ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ! ॐ तत्सत् !
कृपा शंकर
१९ अक्टूबर २०२१
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