हमारा जीवन ही प्रभु की चेतना से भरा हुआ हो, जीवन में परमात्मा ही परमात्मा हो, अन्य कुछ भी नहीं .........
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प्रातःकाल भोर में उठते ही परमात्मा को पूर्ण ह्रदय से पूर्ण प्रेममय होकर नमन करें, और संकल्प करें ....... "आज का दिन मेरे इस जीवन का सर्वश्रेष्ठ दिन होगा| मेरा प्रभु को समर्पण बीते हुए कल से बहुत अधिक अच्छा होगा| आज के दिन प्रभु की सर्वश्रेष्ठ अभिव्यक्ति मुझमें होगी| आज की ध्यान साधना बीते हुए कल से और भी अधिक अच्छी होगी|"
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साधना की गहनता और दीर्घता से कभी संतुष्ट नहीं होना चाहिए .......
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सदा ब्रह्मानंद में निमग्न रहने वाले योगी रामगोपाल मजूमदार ने बालक मुकुंद लाल घोष (जो बाद में परमहंस योगानन्द के नाम से प्रसिद्ध हुए) से कहा .......
"20 वर्ष तक मैं हिमालय की एक निर्जन गुफा में नित्य 18 घंटे ध्यान करता रहा| उसके पश्चात मैं उससे भी अधिक दुर्गम गुफा में चला गया| वहां 25 वर्ष तक नित्य 20 घंटे ध्यान में मग्न रहता| मुझे नींद की आवश्यकता नहीं पडती थी, क्योंकि मैं सदा ईश्वर के सान्निध्य में रहता था| ............ फिर भी ईश्वर की कृपा प्राप्त होने का विश्वास नहीं है|................. "
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परमात्मा अनंत रूप है| एक जीवन के कुछ वर्ष उसकी साधना में बीत जाना कोई बड़ी बात नहीं है| हमारा जीवन ही प्रभु की चेतना से भरा हुआ हो| जीवन में परमात्मा ही परमात्मा हो, अन्य कुछ भी नहीं|
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उस अनंत के स्वामी के दर्शन समाधी में अवश्य होंगे| उसकी कृपा भी अवश्य होगी| उसके आनंद सागर में स्थिति भी अवश्य होगी| उसके साथ स्थायी मिलन भी अवश्य होगा| जितना हम उसके लिए बेचैन हैं, उससे अधिक वह भी हमारे लिए व्याकुल है|
ॐ ॐ ॐ || ॐ गुरु ! ॐ गुरु ! ॐ गुरु !
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प्रातःकाल भोर में उठते ही परमात्मा को पूर्ण ह्रदय से पूर्ण प्रेममय होकर नमन करें, और संकल्प करें ....... "आज का दिन मेरे इस जीवन का सर्वश्रेष्ठ दिन होगा| मेरा प्रभु को समर्पण बीते हुए कल से बहुत अधिक अच्छा होगा| आज के दिन प्रभु की सर्वश्रेष्ठ अभिव्यक्ति मुझमें होगी| आज की ध्यान साधना बीते हुए कल से और भी अधिक अच्छी होगी|"
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साधना की गहनता और दीर्घता से कभी संतुष्ट नहीं होना चाहिए .......
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सदा ब्रह्मानंद में निमग्न रहने वाले योगी रामगोपाल मजूमदार ने बालक मुकुंद लाल घोष (जो बाद में परमहंस योगानन्द के नाम से प्रसिद्ध हुए) से कहा .......
"20 वर्ष तक मैं हिमालय की एक निर्जन गुफा में नित्य 18 घंटे ध्यान करता रहा| उसके पश्चात मैं उससे भी अधिक दुर्गम गुफा में चला गया| वहां 25 वर्ष तक नित्य 20 घंटे ध्यान में मग्न रहता| मुझे नींद की आवश्यकता नहीं पडती थी, क्योंकि मैं सदा ईश्वर के सान्निध्य में रहता था| ............ फिर भी ईश्वर की कृपा प्राप्त होने का विश्वास नहीं है|................. "
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परमात्मा अनंत रूप है| एक जीवन के कुछ वर्ष उसकी साधना में बीत जाना कोई बड़ी बात नहीं है| हमारा जीवन ही प्रभु की चेतना से भरा हुआ हो| जीवन में परमात्मा ही परमात्मा हो, अन्य कुछ भी नहीं|
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उस अनंत के स्वामी के दर्शन समाधी में अवश्य होंगे| उसकी कृपा भी अवश्य होगी| उसके आनंद सागर में स्थिति भी अवश्य होगी| उसके साथ स्थायी मिलन भी अवश्य होगा| जितना हम उसके लिए बेचैन हैं, उससे अधिक वह भी हमारे लिए व्याकुल है|
ॐ ॐ ॐ || ॐ गुरु ! ॐ गुरु ! ॐ गुरु !
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