Thursday, 23 June 2016

आने वाले विनाश के लिए हम स्वयं उत्तरदायी हैं ...

आने वाले विनाश के लिए हम स्वयं उत्तरदायी हैं ....
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जो विनाशकाल आ रहा है उसके बीज तो हमने ही बोये हैं| वर्षा न होने की जिम्मेदारी पूरी मनुष्य जाति पर है| विश्व के अधिकाँश वर्षावन हमने अपने लोभ की पूर्ति के लिए नष्ट कर दिए हैं जो पूरे विश्व को प्राणवायू देते हैं|
मध्य और दक्षिण अमेरिका के अमेज़न के वन का अधिकाँश भाग जो पृथ्वी पर सबसे अधिक प्राणवायू उत्पन्न करता है नष्ट कर दिया गया है| अमेज़न के वन में पेड़-पौधों और पशु-पक्षियों की सर्वाधिक प्रजातियाँ निवास करती हैं| पूरी पृथ्वी पर जितने वृक्ष हैं उनका 20 प्रतिशत तो सिर्फ अमेज़न के वन में ही था| और पृथ्वी पर जितने प्रकार के पशु-पक्षी हैं उनका 10 प्रतिशत भी सिर्फ अमेज़न में ही था|
इसी प्रकार दक्षिण-पूर्वी एशिया के सघन वर्षा वनों का भी भयानक विनाश हुआ है| मध्य-पश्चिमी अफ्रीका के सघन वर्षा वन भी मनुष्य के लालच की बली चढ़ गए हैं| भारत के पश्चिमी घाट और बंगाल-आसाम में भी घने वर्षा वन अब नहीं रहे हैं|
ऑस्ट्रेलिया के उत्तर में ग्रेट बैरियर रीफ का तेजी से क्षरण हो रहा है| अंटार्कटिक में बर्फ से बना एक बहुत विशाल भूखंड पिंघल कर टूट कर अलग हो गया जिससे लाखों पक्षी मर गए| आर्कटिका में बर्फ पिन्घ्ले लगी है| हिमालय के ग्लेशियर भी धीरे धीरे पिंघलने लगे हैं| समुद्र का जलस्तर बढेगा और अनेक तटीय क्षेत्र जलमग्न हो जायेंगे|
मनुष्य का आचार-विचार भी बहुत अधिक प्रदूषित हो गया है| मनुष्य का लोभ और अहंकार ही इस सभ्यता को शीघ्र नष्ट कर देगा| महाविनाश के बाद जो भी लोग बचेंगे उनसे एक नई सभ्यता का जन्म होगा|
महाविनाश अब अधिक दूर नहीं है|

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