Thursday, 23 June 2016

मेरी दृष्टी में योग का सार .........

मेरी दृष्टी में योग का सार .........
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अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस पर सभी का अभिनन्दन और शुभ कामनाएँ !
योग है ....जीवात्मा का परमात्मा से मिलन, महाशक्ति कुण्डलिनी का परमशिव से मिलन | मार्ग है .... प्रेम, प्रेम प्रेम प्रेम परमप्रेम और साधना |
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(1) स्वाध्याय ....
जितना आवश्यक हो उतना ही स्वाध्याय करो, अधिक नहीं | यानि पढो पर सिर्फ प्रेरणा प्राप्त करने के लिए ही | अधिक अध्ययन की आवश्यकता नहीं है |
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(2) खूब ध्यान करो .....
ध्यान के लिए शक्तिशाली देह, दृढ़ मनोबल, प्राण ऊर्जा और आसन की दृढ़ता चाहिए | साथ साथ परमात्मा से परम प्रेम, और शुद्ध आचार-विचार भी चाहिए |
किसी ब्रह्मनिष्ठ श्रौत्रीय आचार्य योगी से प्राणायाम, प्रत्याहार और धारणा के साथ साथ ध्यान की विधि सीख लें | प्रभु कृपा से यम नियम भी अपने आप सिद्ध हो जायेंगे | योग मार्ग में सर्वप्रथम और सबसे महत्व पूर्ण सिद्धि है .... "अंतःकरण की पवित्रता" | अंतःकरण पवित्र होगा तभी ह्रदय में प्रभु आयेंगे |
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(3) सर्वदा निरंतर परमात्मा का चिंतन करो ....
हर समय भगवान को अपनी स्मृति में रखो | सबसे बड़ी आवश्यकता भगवान की भक्ति है जिसके बिना कोई योगी नहीं हो सकता |

जिनके एक भृकुटी विलास मात्र से हज़ारों करोड़ ब्रह्मांडों की सृष्टि, स्थिति और विनाश हो सकता है, वे जब आपके ह्रदय में होंगे तो क्या संभव नहीं है|
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ॐ नमः शिवाय ! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ! अयमात्मा ब्रह्म ! ॐ ॐ ॐ !!

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