साकार रूप में परमात्मा मेरे समक्ष सर्वप्रथम
माता-पिता के रूप में आये| मेरे माता और पिता दोनों साक्षात् परमात्मा थे|
कोई कुछ भी कहे पर मेरे लिए वे साक्षात् उमा-महेश्वर थे|
फिर वे सभी सम्बन्धियों के रूप में, सभी मित्रों और परिचितों के रूप में आये|
सारे तथाकथित शत्रु-मित्र, परिचित और अपरिचित सभी उसी परमात्मा के रूप हैं|
फिर वे सभी सम्बन्धियों के रूप में, सभी मित्रों और परिचितों के रूप में आये|
सारे तथाकथित शत्रु-मित्र, परिचित और अपरिचित सभी उसी परमात्मा के रूप हैं|
सारी सृष्टि, सम्पूर्ण अस्तित्व परमात्मा का ही रूप है| मेरा होना या न
होना भी परमात्मा का ही रूप है| परमात्मा से पृथक कुछ भी नहीं है|
परमात्मा को निराकार या साकार किसी भी रूप में सीमित नहीं किया जा सकता|
वर्तमान चेतना में अब यदि कुछ भी साध्य है तो वह है उनकी सर्वव्यापकता, परम प्रेम, आनंद और समर्पण|
ॐ शिव ! ॐ शिव ! ॐ शिव !
परमात्मा को निराकार या साकार किसी भी रूप में सीमित नहीं किया जा सकता|
वर्तमान चेतना में अब यदि कुछ भी साध्य है तो वह है उनकी सर्वव्यापकता, परम प्रेम, आनंद और समर्पण|
ॐ शिव ! ॐ शिव ! ॐ शिव !
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