Thursday 23 June 2016

पं.राम प्रसाद बिस्मिल

फाँसी पर ले जाते समय बड़े जोर से कहा .....
.........."वन्दे मातरम ! भारतमाता की जय !"
और शान्ति से चलते हुए कहा .....
"मालिक तेरी रज़ा रहे और तू ही तू रहे,
बाकी न मैं रहूँ न मेरी आरजू रहे|
जब तक कि तन में जान रगों में लहू रहे,
तेरा ही जिक्र और तेरी जुस्तजू रहे||"


फाँसी के तख्ते पर खड़े होकर आपने कहा .....
"I wish the downfall of British Empire! अर्थात मैं ब्रिटिश साम्राज्य का पतन चाहता हूँ!"
उसके पश्चात यह शेर कहा --
"अब न अह्ले-वल्वले हैं और न अरमानों की भीड़,
एक मिट जाने की हसरत अब दिले-बिस्मिल में है |"

फिर ईश्वर का ध्यान व प्रार्थना की और यह मन्त्र ---
"ॐ विश्वानि देव सवितर्दुरितानी परासुवः यद् भद्रं तन्न आ सुवः"
पढ़कर अपने गले में अपने ही हाथों से फाँसी का फंदा डाल दिया|
रस्सी खींची गयी| पं.रामप्रसाद जी फाँसी पर लटक गये, आज जिनका ११९वाँ जन्मदिवस है|

"तेरा गौरव अमर रहे माँ, हम दिन चार रहें न रहें"
उन्हीं के इन शब्दों में भारत माँ के इन अमर सुपुत्र को श्रद्धांजलि|
जय जननी जय भारत | ॐ ॐ ॐ ||

पुनश्चः : >>> हिजड़ों को क्या समझ में आये आर्य वीरों की यशोगाथा !
हे पराशक्ति ! भारतवर्ष अब भ्रष्ट, कामचोर, राष्ट्र-धर्मद्रोही, झूठे और रिश्वतखोर कर्मचारियों व अधिकारियों का देश हो गया है ! इन सब का समूल नाश कर !
हे वीर प्रसूति वीरों को जन ! ॐ ॐ ॐ ||

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