Thursday 23 June 2016

क्या परमात्मा को जाना जा सकता है ? .....

क्या परमात्मा को जाना जा सकता है ? .....
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बाल्यकाल से ही मैं यही सुनता आया हूँ कि ईश्वर की खोज ही मनुष्य जीवन का प्रथम, अंतिम और एकमात्र उच्चतम उद्देश्य है| सौभाग्य से घर-परिवार से भी ऐसे ही संस्कार मिले| भक्ति का वातावरण भी खूब मिला| पूर्व जन्मों के अनेक पुण्यों का भी उदय हुआ| इस मामले में मैं स्वयं को परम भाग्यशाली मानता हूँ कि परमात्मा के प्रति प्रेम और उन्हें उपलब्ध होने की जिज्ञासा मेरे सहज स्वभाव में ही थी, जो कि एक दुर्लभतम भाव है| सदा से ही दो तरह की प्रकृतियाँ साथ में थीं एक तो निम्न प्रकृति थी जो निरंतर विषयों की ओर खींचती, और दूसरी एक उच्च प्रकृति थी जो सदा परमात्मा की ओर आकर्षित करती| इन दोनों के बीच सदा द्वंद्व चलता रहा|
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अब तक तो मैं यही मानता आ रहा था कि जीवन का एकमात्र उद्देश्य ईश्वर की प्राप्ति ही है| पर जैसे जैसे आध्यात्मिक परिपक्वता बढती गयी वैसे वैसे जीवन का दृष्टिकोण भी बदलता गया| अब बात दूसरी है|
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खोजा तो उसको जाता है जिसको हमने कभी खोया हो| परमात्मा हमें सदा ही प्राप्त हैं| सारी सृष्टी उनकी समग्रता और उनके मन की एक कल्पना मात्र है| सारा अस्तित्व ही परमात्मा है| हमारी चेतना अज्ञानान्धकार रुपी माया के आवरण से घिरी हुई है| आवश्यकता उस आवरण को भेदने की है| जब वह अज्ञानान्धकार रूपी माया का आवरण हटेगा तब जो कुछ भी होगा वह परमात्मा ही परमात्मा होगा|
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पहली बात तो यह है कि परमात्मा कोई विषय नहीं है जिसको जानने का प्रयत्न करें| परमात्मा किसी भी तरह के ज्ञान की सीमा से परे हैं| हम उन्हें किसी भी तरह के ज्ञान में नहीं बाँध सकते क्योंकि वे रूप, रस, गंध, शब्द और स्पर्श से परे होने के कारण बुद्धि द्वारा अगम्य हैं| सिर्फ श्रुतियां ही प्रमाण हैं|
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जिस तरह एक नमक का कोई पुतला महासागर में डूब कर महासागर ही बन जाता है, जल का एक बुलबुला महासागर में मिल कर महासागर ही बन जाता है वैसे ही परमात्मा में पूर्ण रूपेण समर्पित होकर ही परमात्मा को जाना जा सकता है| Be still and know that I am God. जो उसे जानता है वह कहता नहीं है और जो कहता है वह उसे जानता नहीं है|
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आत्मानुसंधान करते करते व्यक्ति परमात्मा को उपलब्ध हो ही जाता है| और वैसे भी हम उसे उपलब्ध ही हैं| वह कौन है जो हमारे ह्रदय में धड़क रहा है, हमारी आँखों से देख रहा है, हमारे पैरों से चल रहा है, और देह की हर गतिविधि का संचालन कर रहा है? वह परमात्मा ही है|
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परमात्मा की प्राप्ति सर्वप्रथम माता-पिता के रूप में होती है| माता-पिता दोनों परमात्मा ही हैं| फिर भाई-बहिनों, सगे-सम्बन्धियों, शत्रु-मित्रों और सभी के रूपों में परमात्मा ही आते हैं| यह सारी समष्टि परमात्मा ही है| परमात्मा के सिवाय अन्य कुछ भी नहीं है| आप स्वयं भी यह देह नहीं अपितु परमात्मा ही हैं|
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आप सब में हृदयस्थ परमात्मा को प्रणाम !
ॐ तत्सत् ! अयमात्मा ब्रह्म !
ॐ नमः शिवाय ! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय | ॐ ॐ ॐ ||

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