Thursday 23 June 2016

माँ ...

वैसे तो परमात्मा --- माता. पिता, बन्धु, सखा और सर्वस्व है पर माँ के रूप में उसकी अभिव्यक्ति सर्वाधिक प्रिय है| माँ के रूप में जितनी करुणा और प्रेम व्यक्त हुआ है वह अन्य किसी रूप में नहीं| अतः परमात्मा का मातृरूप ही सर्वाधिक प्रिय है| माँ का प्रेममय ह्रदय एक महासागर की तरह इतना विस्तृत है कि उसमें हमारी हिमालय सी भूलें भी एक कंकर पत्थर से अधिक नहीं प्रतीत होतीं|
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ह्रदय की भावनाओं को व्यक्त करना चाहूँ तो मातृरूप में भी परमात्मा को कोई मानवी आकार नहीं दे सकता| जगत्जननी माँ हमारे ह्रदय का सम्पूर्ण प्रेम है जिसे पाना ही हमारे जीवन का लक्ष्य हो सकता है|
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माँ के अनेक रूप हैं पर जब साकार सौम्य रूपों की बात करते हैं तो माँ सीता जी का ही मूर्त रूप सामने आता है| हनुमान जी सीता जी की खोज में लंका गए थे, मार्ग में अनेक बाधाएँ आईं| पर सब को पार करते हुए माँ सीता जी को खोज ही लिया| हमारा जीवन भी माँ सीता जी की ही खोज है, उन्हें पाने की अभीप्सा है|
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सीता तत्व हमारे लिए जीवन की पूर्णता है, जिसे पाने के बाद और कुछ भी प्राप्य नहीं है|
वे पूर्ण प्रकाशमय प्रेममय वह अनंत हैं जिसमें सारी सृष्टि समाई है, जिसके परे अन्य कुछ भी नहीं है|
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जगन्माता ..... जीवन में यदि कुछ प्राप्त करने योग्य है तो वे ही हैं| उनसे परे कुछ भी नहीं है|
हमारा स्थान उनके ह्रदय में है| उनका साक्षात्कार, उनका प्रेम हमारे पृथक अस्तित्व की सबसे बड़ी उपलब्धि है| उनको उपलब्ध होना हमारा जन्मसिद्ध अधिकार और परम कर्तव्य है|
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माँ, तुन्हारी जय हो, हमारा समर्पण स्वीकार करो|
ॐ ॐ ॐ ||

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