Thursday 23 June 2016

कहीं हम भटक तो नहीं रहे हैं ? .....

भगवान की भक्ति, अहैतुकी प्रेम, शरणागति और समर्पण आदि और वेदांत व योग दर्शन की बड़ी बड़ी बातें सुनने में और चर्चा करने में बहुत मीठी और अमृत के समान लगती हैं| पर व्यवहारिक रूप से करने में साधना पक्ष अति कठिन और विष के समान लगता है| यह बात दूसरी है कि साधना का परिणाम अमृत जैसा होता है|
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परमात्मा की प्राप्ति का मार्ग ऐसा है जिसमें साधना तो करनी ही पड़ती है जो अत्यधिक कष्टमय परिश्रम है| गुरु तो मार्गदर्शन करते हैं, पर चलना तो स्वयं को ही पड़ता है| इसमें कोई लघुमार्ग यानि Short cut नहीं है|
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प्रातःकाल सूर्योदय से पूर्व उठना, संध्या, नामजप, अष्टांग योग आदि में बहुत अधिक उत्साह और ऊर्जा चाहिए| कहीं हम साधना के स्थान पर आध्यात्मिक/धार्मिक मनोरंजन में न फँस जाएँ|
अतः सतर्क रहें|
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सभी को शुभ कामनाएँ| ॐ नमः शिवाय ! ॐ नमः शिवाय ! ॐ नमः शिवाय !
सभी का कल्याण हो | ॐ ॐ ॐ ||

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