Monday 1 August 2016

एक विचार बहु विवाह के बारे में ........

एक विचार .....
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मैं प्रबुद्ध और चिंतनशील लोगों के विचार जानना चाहता हूँ बहु-विवाह पर| वर्तमान में एक धर्म विशेष के लोगों को अनेक पत्नियां रखने की छूट है| उनकी जनसंख्या तीब्रता से बढ़ रही है, वहीं हिंदुओं की तीब्रता से घट रही है|
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सनातन धर्म में एक से अधिक पत्नियां रखने का कहीं भी निषेध नहीं है| भारत के सभी राजाओं के (भगवान श्री राम को छोड़कर) अनेक पत्नियाँ थीं| अनेक ऋषि-मुनियों की भी अनेक पत्नियाँ थीं| सामान्य नागरिकों के लिए भी बहु-विवाह अति सामान्य था| भारत में तलाक की अनुमति कभी नहीं थी| एक से अधिक पत्नी रखना कभी भी बुरा नहीं माना जाता था| जवाहर लाल नेहरु ने हिंदू विवाह कानून हिंदुओं पर थोपा वह धर्म-विरुद्ध था| या तो यह कानून सभी नागरिकों के लिए समान होता पर सिर्फ हिंदुओं के लिए ऐसा बनाना एक सोची समझी जेहादी चाल थी|
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समाज में बहुत सी परित्यक्ता, असहाय, निर्धन और विपरीत परिस्थितियों की शिकार महिलायें होती हैं| कोई हिंदू चाह कर भी इन्हें नहीं अपना सकता| ऐसी स्त्रियाँ अंततः विधर्मियों के जाल में फँस जाती हैं और उनकी जनसंख्या और भी तेजी से बढ़ती है|
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हिंदुओं को यदि बचे रहना है तो या तो सामान नागरिक क़ानून की मांग करनी चाहिए या इस कानून में संशोधन की मांग करनी चाहिए और बहु-विवाह करने चाहियें| अन्यथा अगले बीस तीस साल में हिंदुओं की वही गति होगी जो आज पाकिस्तान और बंगला-देश में हो रही है| याद रखिये कि आप की धर्म-निरपेक्षता तभी तक है जब तक यहाँ हिंदू बाहुल्य है| जब हिंदू अल्पसंख्यक हो जयेगा तब आप अपनी धर्मनिरपेक्षता का कीर्तन करते रहना पर सुनने वाला कोई नहीं होगा और यह देश पाकिस्तान का ही भाग होने को विवश कर दिया जाएगा|
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आप सब से हाथ जोड़कर प्रार्थना है कि उपरोक्त विषय पर विचार करें और जन मानस में चेतना जगाएं| इस विचार से सभी को अवगत कराएं| धन्यवाद|

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