Saturday, 11 January 2025

भगवान की प्राप्ति से अधिक सरल अन्य कुछ भी नहीं है, भगवान कहीं दूर नहीं, हमारे हृदय में ही बैठे हुए हैं ---

 'भगवान की उपासना' सतत् निरंतर चलते रहना है। कहीं भी रुक गए तो पतन अवश्यंभावी है। हमें निमित्त बनाकर हमारे माध्यम से भगवान स्वयं को व्यक्त कर रहे हैं। हम उनकी दिव्य तेजस्विता, आलोक, प्रेम और पूर्णता ही नहीं, उनसे अपरिछिन्न प्रत्यगात्मा परमशिव हैं।

भगवान की प्राप्ति से अधिक सरल अन्य कुछ भी नहीं है| भगवान कहीं दूर नहीं, हमारे हृदय में ही बैठे हुए हैं।

"ईश्वरः सर्वभूतानां हृद्देशेऽर्जुन तिष्ठति| भ्रामयन्सर्वभूतानि यन्त्रारूढानि मायया||"
यह जीवन अपनी समग्रता में परमब्रह्म परमात्मा को समर्पित है। समर्पण में पूर्णता के अतिरिक्त अन्य कोई विचार मेरे समक्ष नहीं है। मेरी चेतना में वासुदेव भगवान श्रीकृष्ण कभी शांभवी मुद्रा में, तो कभी त्रिभंग मुद्रा में अपनी स्वयं की अनंतता/पूर्णता का ध्यान कर रहे हैं। वे ही परमशिव हैं।
"ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात्पूर्णमुदच्यते। पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते।"
"ॐ सह नाववतु। सह नौ भुनक्तु। सह वीर्यं करवावहै। तेजस्विनावधीतमस्तु मा विद्विषावहै॥ ॐ शांति, शांति, शांतिः॥"
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वे किसे मिलते हैं?---
"निर्मल मन जन सो मोहि पावा | मोहि कपट छल छिद्र न भावा ||"
उन्हें पाने के लिए अपने अन्तःकरण का स्वभाव स्वच्छ और शुद्ध करना होगा| फिर वे तो मिले हुए ही हैं| हमारे और भगवान के मध्य में कोई दूरी नहीं है| जहाँ कपट और छल हैं, वे वहाँ नहीं आ सकते| छल-कपट से मुक्त होते ही भगवान तो मिले हुए ही हैं|
ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
१० जनवरी २०२२

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