गायत्री मंत्र और सावित्री मंत्र ---
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परंपरा के अनुसार गायत्री-मंत्र व सावित्री-मंत्र के जप का अधिकार सिर्फ उनको ही है जिनका अधिकृत आचार्य गुरु द्वारा उपनयन यानि यज्ञोपवीत संस्कार हो चुका है| जिन का जनेऊ यानि उपनयन अभी तक नहीं हुआ है, वे गायत्री-मंत्र व सावित्री-मंत्र का जप न करें| उन के लिए अन्य अनेक पौराणिक मंत्र हैं| सांसारिक लाभ के लिए गायत्री जप नहीं करना चाहिये| यह केवल आध्यात्मिक ज्ञान के लिये है| सांसारिक और आध्यात्मिक ज्ञान के लिए भी अन्य भी अनेक मंत्र हैं| परंपरानुसार वे विवाहित महिलायें भी गायत्री मंत्र का जप कर सकती हैं जिनके पतियों का उपनयन हो चुका है| कन्याओं के लिए गायत्री-मंत्र के जप की अनुमति नहीं है| कुछ आचार्य, कन्याओं को भी इसकी अनुमति दीक्षोपरांत देते हैं|
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सामान्यतः गायत्री मंत्र का जप तीन व्याहृतियों -- ॐ भूः , ॐ भुवः, ॐ स्वः के साथ होता है| जब गायत्री मंत्र का जप सात व्याहृतियों -- ॐ भूः , ॐ भुवः, ॐ स्वः, ॐ महः, ॐ जनः, ॐ तपः, ॐ सत्यं --- के साथ किया जाता है, तब यह सावित्री मंत्र कहलाता है| गायत्री-मंत्र का ही विस्तृत रूप -- सावित्री मन्त्र है, जिस का प्रयोग वैदिक-प्राणायाम के लिए होता है|
क्रिया-योग में सप्त व्याहृतियों के साथ की जाने वाली एक गायत्री-क्रिया है जो गोपनीय है| उसकी विधि गुरु-परंपरा में ही गुरु द्वारा शिष्य को सामने बैठाकर पात्रतानुसार सिखाई जाती है|
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प्राणायाम में जप हेतु सावित्री मन्त्र :--
"ॐ भूः ॐ भुवः ॐ स्वः ॐ महः ॐ जनः ॐ तपः ॐ सत्यं | ॐ तत्सवितुर्वरेण्यम् | भर्गो देवस्य धीमहि | धियो योनः प्रचोदयात् || ॐ आपो ज्योतिरसोऽमृतं ब्रह्म भूर्भुवः स्वरोम् ||"
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(Note: "ज्योति" शब्द को लिखते समय "ति" की मात्रा छोटी होती है, लेकिन मानसिक जप में यह बड़ी यानि "ती" हो जाती है)
ॐ तत्सत् !
२ मार्च २०२१
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