Wednesday, 2 March 2022

अब बाहरी रुचियाँ धीरे धीरे समाप्त हो रही हैं ---

 जब से ब्रह्मनिष्ठा स्पष्ट रूप से जागृत हुई है, तब से सारी अवशिष्ट ऊर्जा का प्रवाह ऊर्ध्वगामी होकर एक ही दिशा में प्रवाहित हो रहा है। अन्यत्र रुचियाँ क्षीण होते होते समाप्त हो रही हैं।

.

जब भी समय मिले, कूटस्थ सूर्यमण्डल में पुरुषोत्तम का ध्यान करें। गीता में जिस ब्राह्मी स्थिति की बात कही गई है, निश्चयपूर्वक प्रयास करते हुए आध्यात्म की उस परावस्था में रहें। सारा जगत ही ब्रह्ममय है। किसी भी परिस्थिति में परमात्मा के अपने इष्ट स्वरूप की उपासना न छोड़ें।
.
कहीं भी आने-जाने के लिए अब मुझे साथ में एक सहायक की आवश्यकता पड़ने लगी है। अकेले कहीं यात्रा करना अब लगभग असंभव सा हो रहा है। इसलिए अति आवश्यक होने पर ही कहीं जाता हूँ। बाहर की दुनियाँ से संपर्क धीरे धीरे अब कम होता जा रहा है।
.
जब से सृष्टि का आरंभ हुआ है तभी से सत्य-सनातन-धर्म हमारा स्वधर्म है, जिस पर दृढ़ रहें, और राष्ट्र की रक्षा करें। निज जीवन में परम सत्य की अभिव्यक्ति और आत्म-साक्षात्कार -- सनातन धर्म का सार है। प्रकृति के नियमों के अनुसार संसार ऐसे ही चलता रहेगा। परमात्मा ही परम सत्य है।
.
आत्मा की शाश्वतता, कर्मफलों का सिद्धांत, पुनर्जन्म, और ईश्वर के अवतारों में आस्था -- ये आधार हैं, जिन पर हमारी आस्था टिकी हुई है। स्वधर्म में ही जीना और मरना ही श्रेष्ठ है, स्वधर्म का थोड़ा-बहुत पालन भी महाभय से हमारी रक्षा करता है।
जीवन में भक्ति, ज्ञान और कर्म को समझें और अपने आचरण में उन्हें उतारें। सभी को शुभ कामनायें और नमन !!
ॐ तत्सत् !!
ॐ नमः शम्भवाय च मयोभवाय च नमः शंकराय च।
मयस्कराय च नमः शिवाय च शिवतराय च॥"
.
सभी का कल्याण हो। ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२ मार्च २०२२

No comments:

Post a Comment