Wednesday, 2 March 2022

हमारा यह शरीर-महाराज (या देह-महारानी) और हम ---

 हमारा यह शरीर-महाराज (या देह-महारानी) और हम ---

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भगवान ने यह शरीर हमें हमारी इस वर्तमान लोकयात्रा के लिए ही दिया है| इस शरीर के साथ हमारा बस उतना ही संबंध है, जितना हमारा संबंध हमारी किसी साइकिल, मोटर-साइकिल, स्कूटर या मोटर-कार के साथ है| जिस तरह से हम उन वाहनों की देखभाल करते हैं, उसी तरह से उतनी ही देखभाल हमें इस शरीर की भी करनी है| हमारा व्यक्तिगत संबंध सिर्फ और सिर्फ परमात्मा से है| अगर आप आध्यात्म-पथ के पथिक हैं, यो स्वयं को यह शरीर-महाराज (या देह-महारानी) मानना छोड़ना ही पड़ेगा|
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हम स्वयं को यह शरीर मानते हैं, इसीलिए हमें स्वर्ग/नर्क, सुख/दुःख व कर्मफलों के भोगों की प्राप्ति होती है| अन्यथा हमारा निवास तो उस लोक में है जिसके बारे में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं ---
"न तद्भासयते सूर्यो न शशाङ्को न पावकः| यद्गत्वा न निवर्तन्ते तद्धाम परमं मम||१५:६||"
अर्थात् "उसे न सूर्य प्रकाशित कर सकता है और न चन्द्रमा और न अग्नि| जिसे प्राप्त कर मनुष्य पुन: (संसार को) नहीं लौटते हैं, वह मेरा परम धाम है||"
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आचार्य शंकर ने अपने भाष्य में लिखा है कि -- "वह धाम एक परमपद है जिसे प्रकाशित करने की शक्ति सूर्य, चन्द्र, और अग्नि में भी नहीं है| उस वैष्णवपद को पाकर मनुष्य पीछे नहीं लौटते, वह विष्णु का परमधाम ही हमारा निवास है| सभी गतियाँ अन्त में पुनर्रागमनयुक्त होती हैं, सभी संयोग अन्तमें वियोगवाले होते हैं| लेकिन उस धाम को प्राप्त हुओं का पुनर्रागमन नहीं होता|"
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भगवान आगे फिर कहते हैं ---
"ममैवांशो जीवलोके जीवभूतः सनातनः| मनःषष्ठानीन्द्रियाणि प्रकृतिस्थानि कर्षति||१५:७||"
"शरीरं यदवाप्नोति यच्चाप्युत्क्रामतीश्वरः| गृहीत्वैतानि संयाति वायुर्गन्धानिवाशयात्||१५:८||"
"श्रोत्रं चक्षुः स्पर्शनं च रसनं घ्राणमेव च| अधिष्ठाय मनश्चायं विषयानुपसेवते||१५:९||"
"उत्क्रामन्तं स्थितं वापि भुञ्जानं वा गुणान्वितम्| विमूढा नानुपश्यन्ति पश्यन्ति ज्ञानचक्षुषः||१५:१०||"
(उपरोक्त श्लोकों का गहन स्वाध्याय स्वयं करें)
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सार की बात यह है कि हम यह देह नहीं, एक शाश्वत आत्मा हैं, और परमात्मा के साथ एक हैं| जिन्हें हम सत्य-नारायण, वासुदेव, पुरुषोत्तम, विष्णु, परमशिव, परमब्रह्म आदि कहते हैं, उन परमात्मा के हृदय में ही हमारा निवास है|
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गुरु महाराज कहते हैं कि सिर्फ स्वाध्याय, संकल्प या चर्चा मात्र से ही काम नहीं चलेगा| इसके लिए भगवान से परमप्रेम, और समर्पित होकर गहन ध्यान साधना/उपासना करनी पड़ेगी|
सभी को शुभ कामनाएँ और नमन!!
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ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२ मार्च २०२१

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