अब किस से, किस की, और क्या शिकायत करूँ?
मेरे अब तक के निजी अनुभव और सोच-विचार से - समस्या कहीं बाहर नहीं, समस्या तो मैं स्वयं हूँ।
निज जीवन में परमात्मा की पूर्ण अभिव्यक्ति हो, यही एकमात्र समाधान और सत्य है। अन्य सब एक मृगतृष्णा और भटकाव है।
यह संसार मेरा नहीं, परमात्मा का है, और उनके बनाए हुए नियमों के अनुसार उनकी प्रकृति चलाती रहेगी। निज जीवन में परमात्मा की प्राप्ति ही जीवन का उद्देश्य और सबसे बड़ी सेवा है। ॐ ॐ ॐ !!
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समस्या भी मैं हूँ, और समाधान भी मैं स्वयं ही हूँ।
समस्या है ..... संसार से अपेक्षा, जो निराशा को जन्म देती है।
समाधान है -- समर्पण -- अपने कर्मों, कर्मफलों और अंतःकरण
(मन, बुद्धि, चित्त व अहंकार) का।
मार्ग है -- परमप्रेम -- जिस पर जो चल पड़ा, वह भगवान को अपने हृदय में ही पाता है।
भगवान कहीं दूर नहीं हैं, यहीं पर और इसी समय मेरे समक्ष प्रत्यक्ष बिराजमान हैं। दोष मेरी दृष्टि का है। भगवान मेरे हृदय में, और मैं भगवान के हृदय में हूँ।
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अपनी चेतना को भ्रूमध्य से ऊपर रखो और निरंतर परमात्मा का चिंतन करो।
फिर हमारी चिंता स्वयँ परमात्मा करेंगे।
आध्यात्मिक दृष्टी से मनुष्य की प्रथम, अंतिम और एकमात्र समस्या -- परमात्मा की प्राप्ति है। इसके अतिरिक्त अन्य कोई समस्या नहीं है। अन्य सब समस्याएँ परमात्मा की हैं। सब समस्याओं का समाधान -- परमात्मा को प्राप्त करना है। एकमात्र मार्ग है -- परमप्रेम और मुमुक्षुत्व।
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ॐ तत्सत्। ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
३ मार्च २०२२
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