Friday 4 August 2017

नियमित अभ्यास .......

नियमित अभ्यास .......
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साधना काल में नियमित अभ्यास आवश्यक है| साधना क्रम और साधना काल को धीरे धीरे लगातार आगे बढ़ाएँ| राग-द्वेष और आलस्य .... ये साधक के सबसे बड़े शत्रु हैं, अभ्यास इनसे बचने का भी करें| धीरे धीरे अभ्यास करते करते मन भी मित्र बन जाता है| नित्य मन को प्रशिक्षण दो और बताओ कि हे मन, तूँ कहीं भी चला जा, तूँ जहाँ भी जाएगा, वहाँ मेरे प्रभु के चरण कमलों में ही स्थान पायेगा| मेरे प्रभु के चरण कमल सर्वत्र हैं| तूँ आकाश-पाताल, पूर्व-पश्चिम, उत्तर-दक्षिण .... कहीं भी चला जा, उनके अतिरिक्त अन्य कुछ भी नहीं है| मन को समझा-बुझा कर ही वश में कर सकते हैं, बलात् नहीं| एक बार मन वश में हो जाए तो आधा युद्ध जीता हुआ मान लीजिये| अपने चैतन्य में परमात्मा को निरंतर रखें| अभ्यास द्वारा यह संभव है|

आप सब में हृदयस्थ परमात्मा को नमन ! ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||

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