Friday 4 August 2017

सुख, शांति और सुरक्षा स्वयं के हृदय मंदिर में स्थित परमात्मा में ही है, बाहर कहीं भी नहीं .....

सुख, शांति और सुरक्षा स्वयं के हृदय मंदिर में स्थित परमात्मा में ही है, बाहर कहीं भी नहीं .....
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सुख, शांति और सुरक्षा, सामान्यतः ये तीन सबसे बड़े लक्ष्य हमारे जीवन में होते हैं जिनके लिए हम अपना पूरा जीवन दाँव पर लगा देते हैं| इन्हीं के लिए हम खूब रुपया पैसा कमाते हैं, मकान बनवाते या खरीदते हैं व तरह तरह की आवश्यकता और विलासिता के सामान खरीदते हैं| पूरे जीवन की भागदौड़ और कठिनतम संघर्ष के उपरांत जो हम प्राप्त करते हैं, उस से भौतिक, मानसिक, बौद्धिक, भावनात्मक और सामाजिक संतुष्टि तो मिलती है, पर ह्रदय में एक असंतुष्टि के भाव की वेदना सदा बनी रहती है| सांसारिक दृष्टी से सब कुछ मिल जाने के पश्चात् भी एक खालीपन जीवन में रहता है|
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अनेक बार तो हमारी उपलब्धियाँ हीं हमारे व्यक्तिगत, पारिवारिक और सामाजिक जीवन में तनाव और कष्टों का कारण बन जाती हैं| समाज में अपने आसपास कहीं भी देख लो ..... इतनी पारिवारिक कलह, तनाव, लड़ाई-झगड़े, मिथ्या आरोप-प्रत्यारोप, जिन्हें देख कर लगता है कि हमारा सामाजिक ढाँचा ही खोखला हो गया है| मानसिक अवसाद (मेंटल डिप्रेशन) समाज के संपन्न वर्ग में एक सामान्य रोग है| सबसे अधिक आत्महत्याएँ विश्व के संपन्न देशों में और संपन्न लोगों द्वारा ही होती हैं|
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निज जीवन में हम चाहे कितनी भी सकारात्मक सोच रखें पर ईमानदारी से यदि स्वयं से पूछें तो खुद के जीवन में एक खालीपन अवश्य पायेंगे| मुझे इस जीवन में पूरे भारत में और भारत से बाहर भी बहुत सारे देशों में जाने का काम पडा है, और खूब घूमने-फिरने के दुर्लभ अवसर मिले हैं| जीवन का सर्वश्रेष्ठ भाग भारत से बाहर ही बीता है| खूब समुद्री यात्राएँ की हैं| पृथ्वी के अनेक देशों में अनेक तरह के लोगों से मिलने और बातचीत करने के भी अवसर मिले हैं|

मैंने तो अपने पूरे जीवन में अपने इस भौतिक जीवन से संतुष्ट किसी भी व्यक्ति को आज तक नहीं पाया है, हालाँकि कहने मात्र को तो सब अपने आप को संतुष्ट बताते हैं, पर उनकी पीड़ा छिपी नहीं रहती है| सब कुछ होते हुए भी अंतहीन भागदौड़ ही सबका जीवन बन गयी है| खूब संपत्ति और सामाजिक सुरक्षा भी जहाँ है वहाँ भी सब कुछ होते हुए भी लोगों के जीवन में एक शुन्यता और पीड़ा है|
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यह पीड़ा अपनी अंतरात्मा यानि स्वयं को न जानने की पीड़ा है| जीवन में वास्तविक सुख, शांति और सुरक्षा स्वयं के हृदय मंदिर में स्थित परमात्मा में ही है, स्वयं से बाहर कहीं भी नहीं| यह मेरा अपना स्वयं का निजी अनुभव है जिसे मैं यहाँ व्यक्त कर रहा हूँ|
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हम सब परमात्मा की साकार अभिव्यक्तियाँ हैं| सब को सप्रेम सादर नमन !

ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
०३ अगस्त २०१७

1 comment:

  1. अपने आसपास रहने वाली आत्माओं की नकारात्मकता, और निवास स्थान का तामसिक वातावरण साधना में सबसे बड़ी बाधा होता है | हम अपने भीतर की कमियाँ ही न देखें, बाहर की भी देखें | स्थान का और वातावरण का बड़ा महत्त्व है |

    इसलिए निःसंग रहें और विपरीतगामी आत्माओं और किसी स्थान विशेष से मोह न रखें |

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