Friday 4 August 2017

"लिव इन रिलेशनशिप" और समाज का भविष्य -----

मित्रता के नाम पर "लिव इन रिलेशनशिप" क्या सही है ?????
"लिव इन रिलेशनशिप" और समाज का भविष्य -----
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वर्तमान में बड़े शहरों में मित्रता के नाम पर बिना विवाह के लाखों युवक-युवतियाँ रह रहे हैं| यह पश्चिमी सभ्यता का प्रभाव है जिसे वर्तमान शिक्षा पद्धति के कारण पड़े संस्कारों की वजह से और बड़े शहरों में नौकरी करने और आवासीय समस्याओं के कारण बदल नहीं सकते| यह एक विवशता हो गयी है|
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इससे अनेक सामाजिक समस्याएँ आ रहीं हैं, पर कुछ कर नहीं सकते| इसका परिणाम यह होगा ------
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(१) विवाह की संस्था विफल हो जायेगी| लिव इन रिलेशनशिप में युवा वर्ग की सोच यह है कि जब तक निभती है साथ साथ रहो, जब नहीं निभती तब मित्र की तरह अलग हो जाओ|
लडके देख रहे हैं कि आजकल यह एक फैशन सा हो गया है लडकियों में कि किसी पैसे वाले लडके को कैसे भी फँसाकर विवाह कर लो फिर उसका जीवन दूभर कर दो, वह तलाक देगा और उसकी आधी संपत्ति मिल जायेगी|
महिला अत्याचार विरोधी कानूनों के दुरुपयोग ने लाखों लडके वालों का जीवन नर्क कर रखा है| अतः लड़के विवाह नहीं करना चाहते|
लडकियाँ विवाह से पूर्व अनेक लडकों से यौन सम्बन्ध बना लेती है| विवाह के बाद उसे अपने पति से वह यौन सुख नहीं मिलता जो प्रेमियों से मिलता था अतः अनबन शुरू हो जाती है और विवाह विच्छेद हो जाते हैं|
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(२) हिन्दुओं की जनसंख्या मुसलमानों से कम हो जायेगी और भारत के हिन्दुओं का वो ही हाल होगा जो पाकिस्तान और बंगलादेश में है|
भारत में सारे कानून सिर्फ हिन्दुओं के लिए हैं|
मुसलमानों को सबसे बड़ा लाभ यह है कि जब मर्जी आये तब चाहे जितने विवाह करो और बीबी को जब चाहे तब छोड़ दो| कोई भरण-पोषण का खर्चा भी नहीं देना पड़ता| फिर और विवाह कर लो|
परित्यक्ता हिन्दू से मुसलमान बनी लडकियाँ निराश्रित होने कारण देह-व्यापार में धकेल दी जाती हैं|
हजारों हिन्दू तो इस्लाम काबुल कर लेते हैं सिर्फ अपनी पत्नियों से पीछा छूटाने के लिए|
अतः इस समस्या पर गंभीरता से समाज के नेताओं को विचार करना चाहिए| सिर्फ कानून से इस का समाधान नहीं होगा|
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हिन्दू बच्चों को पहली कक्षा से ही धार्मिक शिक्षा देनी होगी| जो इसे नहीं चाहते वे अपने बच्चों को मदरसों और कोन्वेंट स्कूलों में भेज सकते हैं|
धन्यवाद|

अगस्त ०४, २०१४.

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