Saturday 24 June 2017

बंगाल में गोरखा प्रदेश की माँग पूर्णतः न्यायसंगत और न्यायोचित है ...

बंगाल में गोरखा प्रदेश की माँग पूर्णतः न्यायसंगत और न्यायोचित है .......
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कल मैंने एक पंक्ति प्रस्तुत कर बंगाल के दार्जिलिंग में हो रहे गोरखा आन्दोलन का समर्थन किया था| उसको अनेक लोगों ने पसंद भी किया, और कुछ लोगों ने प्रतिप्रश्न भी पूछा था कि क्या मुझे वहाँ की परिस्थितियों का ज्ञान है?
कल उनको पूरा उत्तर देने के लिए मेरे पास समय नहीं था अतः मैनें वह प्रस्तुति ही हटा दी थी| आज में कम से कम शब्दों में गोरखाप्रदेश आन्दोलन की पृष्ठ भूमि बताना चाहता हूँ|
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> सन १७८० ई. तक दार्जिलिंग और सिलिगुड़ी सिक्किम का भाग थे|
> सन १७८० ई. में नेपाल ने सिक्किम पर आक्रमण कर वहाँ अपना अधिकार कर लिया था|
> अँगरेज़ सेना नेपाल को तो जीत नहीं पाई थी पर सिक्किम को गुरखाओं से मुक्त कराने के लिए सन १८१४ ई. में अँगरेज़ सेना ने सिक्किम में एंग्लो-गोरखा युद्ध कर के गोरखाओं को पराजित कर दिया|
> सन १८१५ ई.में हुई सुगोली की संधि के अनुसार यह सारा क्षेत्र ब्रिटिश सरकार ने अपने अधिकार में ले लिया|
> सन १८१७ ई. में हुई टटियालिया की संधि के अनुसार सिक्किम का क्षेत्र अंग्रेजों ने सिक्किम के चोग्याल को बापस सौंप दिया,
> पर सन १८३५ ई. में दार्जिलिंग के १३८ वर्गमील के क्षेत्र को सिक्किम के चोग्याल ने अंग्रेजों को भेंट में दे दिया| उसी समय अंग्रेजों ने भूटान के किल्मपोंग को भी अपने अधिकार में ले लिया|
> सन १८६६ ई. में अंग्रेजों ने दार्जिलिंग जिले का निर्माण किया और अंग्रेजों के रहने योग्य मानकर इसका खूब विकास किया|
> आज़ादी के पश्चात नेपाल भी भारत में विलय होना चाहता था, पर भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री ने नेपाल को भारत में नहीं मिलने दिया क्योंकि नेपाल के राजा इसका घोषित हिन्दू राष्ट्र का दर्जा बरकरार ही रखना चाहते थे जो भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री को पसंद नहीं था| सूचनार्थ यह भी बताना चाहूँगा कि उत्तराखंड का कुमायूँ हिमालय का अधिकाँश क्षेत्र भी कभी नेपाल का ही भाग था जिसे अंग्रेजों ने नेपाल से छीन लिया था|
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> अंग्रेजों ने अपने प्रिय दार्जिलिंग क्षेत्र को बंगाल में मिला दिया था क्योंकि उस समय कोलकाता पूरे भारत की राजधानी थी| दार्जिलिंग क्षेत्र में गोरखाओं का बहुमत है जो बंगला भाषा का बिलकुल भी प्रयोग नहीं करते| ये देवनागरी लिपि में नेपाली भाषा का प्रयोग करते हैं| यहाँ के गोरखा लोग कट्टर हिन्दू हैं जिन्हें गोह्त्या बिलकुल भी सहन नहीं है|
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> जब बंगाल में मार्क्सवादी सत्ता में थे तब कांग्रेस ने मार्क्सवादियों को परेशान करने के लिए अलग गोरखालैंड की माँग का पूरा समर्थन किया था| एक पूर्व फौजी सुभाष घीसिंग जिसने यह आन्दोलन आरम्भ किया था वह पक्का कोंग्रेसी और राजीव गाँधी का भक्त था| उसे राजीव गाँधी का पूरा समर्थन प्राप्त था| सन १९८८ ई. तक इस आन्दोलन में बारह सौ से अधिक लोग सरकारी आंकड़ों के अनुसार मारे जा चुके थे|
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> सन १९८८ में ही एक स्वशासी दार्जिलिंग गोरखा कोंसिल बना कर इस क्षेत्र का प्रशासन उसे सौंप दिया गया| सन २००४ में इस आन्दोलन में फूट पड़ गयी|
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> सन २००९ के आम चुनाव के समय भारतीय जनता पार्टी ने वादा किया था कि यदि वे बापस सत्ता में आये तो तेलंगाना और गोरखालैंड नाम के दो नए राज्य बनाएँगे| इस क्षेत्र के लोगों ने भाजपा का पूरा समर्थन किया और राजस्थान के रहने वाले जसवंत सिंह को यहाँ से सांसद बना कर लोकसभा में भेजा|
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> सन २०११ के विधानसभा के चुनाव में गोरखा जनमुक्ति मोर्चा के चार विधायक जीते| ३० जुलाई २०१३ को कोंग्रेस ने पृथक तेलंगाना राज्य का प्रस्ताव पास कर दिया| पश्चिमी बंगाल सरकार ने पृथक गोरखालैंड नहीं बनने दिया और गोरखा जनमुक्ति आन्दोलन के सभी नेताओं को बंदी बना लिया|
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> पश्चिमी बंगाल में सन १९६१ में नेपाली भाषा को राज्य भाषा का दर्जा मिल गया था| सन १९९२ में नेपाली भाषा को भारत सरकार ने भारतवर्ष की एक सरकारी भाषा की मान्यता दे दी थी|
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> अब बंगाल की वर्त्तमान मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने बंगाली भाषा को यहाँ अनिवार्य कर दिया है जिसके विरोध में पृथक गोरखालेंड का हिंसक आन्दोलन प्रारम्भ हो गया है| यह यहाँ के लोगों के विरुद्ध एक वचन भंग हुआ है|
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अब मैं इसका निर्णय पाठकों पर छोड़ता हूँ की एक पृथक गोरखा प्रदेश की मांग न्यायसंगत है या नहीं| अगर यह बंगाल का ही भाग रहा तो बांग्लादेशियों से भर जाएगा, यह भी विचार का विषय है|
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जय जननी जय भारत ! ॐ ॐ ॐ ||

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