Thursday, 29 March 2018

धर्म उसी की रक्षा करेगा जो धर्म की रक्षा करेंगे .....

धर्म उसी की रक्षा करेगा जो धर्म की रक्षा करेंगे .....
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"आध्यात्मिक साधना" और "धर्माचरण" से ही हमारे धर्म की रक्षा हुई है और भविष्य में भी इन्हीं से होगी| जो धर्मरक्षा की बाते करते हैं वे सर्वप्रथम तो अपने निज जीवन में अपने नित्य कर्मों का पालन करें जो उनका धर्म है, फिर धर्मरक्षा की बातें करें| धर्म ही हमारी रक्षा करेगा|
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मनु महाराज का कथन है ....
धर्म एव हतो हन्ति धर्मो रक्षति रक्षितः| तस्माद्धर्मो न हन्तव्यो मा नो धर्मो हतोऽवधीत्|| (म.स्म.८:१५)
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गीता में भी भगवान ने कहा है ....
नेहाभिक्रमनाशोऽस्ति प्रत्यवायो न विद्यते| स्वल्पमप्यस्य धर्मस्य त्रायते महतो भयात्|| (२:४०)
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कणाद ऋषि ने वैशेषिक सूत्रों में धर्म को इस प्रकार परिभाषित किया है .... "यतोऽभ्युदयनिःश्रेयससिद्धि: स धर्म:|" (वै.सू.१:१:२)
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मनु महाराज ने धर्म के दस लक्षण बताएँ हैं .....
धृति: क्षमा दमोऽस्‍तेयं शौचमिन्‍द्रियनिग्रह:| धीर्विद्या सत्‍यमक्रोधो दशकं धर्मलक्षणम्‌|| (म.स्‍म.६:९२)
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पद्मपुराण में कहा गया है .....
श्रूयतां धर्मसर्वस्वं श्रुत्वा चाप्यवधार्यताम्| आत्मनः प्रतिकूलानि परेषां न समाचरेत्|| (पद्म.पु.शृष्टि.१९:३५७-३५८)
पद्मपुराण में ही धर्म की रक्षा के उपाय बताये गए हैं ....
ब्रह्मचर्येण सत्येन तपसा च प्रवर्तते| दानेन नियमेनापि क्षमा शौचेन वल्लभ||
अहिंसया सुशांत्या च अस्तेयेनापि वर्तते| एतैर्दशभिरगैस्तु धर्ममेव सुसूचयेत||
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याज्ञवल्क्य ऋषि ने धर्म के नौ साधन बताये है .....
अहिंसा सत्‍यमस्‍तेयं शौचमिन्‍द्रियनिग्रह:| दानं दमो दया शान्‍ति: सर्वेषां धर्मसाधनम्‌||
महाभारत में महात्मा विदुर ने इज्या (यज्ञ-याग, पूजा आदि), अध्ययन, दान, तप, सत्य, दया, क्षमा और अलोभ को धर्म बताया है|
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श्रीमद्भागवत के सप्तम स्कन्ध में धर्म के तीस लक्षण बतलाये हैं और वे बड़े ही महत्त्व के हैं|
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रामचरितमानस के लंका काण्ड में भी संत तुलसीदास जी ने धर्म क्या है इसको स्पष्ट किया है|
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धर्म सदा हम सब भारतीयों के जीवन का केंद्र बिंदु रहा है और धर्म ही भारत का प्राण है| अतः हमारा आचरण धर्ममय हो, यह धर्म ही हमारी रक्षा करेगा| भगवान से हमारी प्रार्थना है कि हमारा आचरण धर्ममय हो और धर्म सदा हमारी सदा रक्षा करे| ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!

कृपा शंकर
२९ मार्च २०१८

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