Thursday, 29 March 2018

२९ मार्च १९१४ को श्रीमाँ और श्रीअरविंद की भेंट .....

२९ मार्च १९१४ को श्रीमाँ ने पोंडिचेरी आकर श्री अरविन्द से भेंट की| यह एक महान ऐतिहासिक घटना थी जिसका पूरे विश्व की आध्यात्मिक चेतना पर प्रभाव पड़ा| भारत की स्वतंत्रता पर भी इसका प्रभाव पडा और भारत की स्वतंत्रता सुनिश्चित हुई|

श्री अरविन्द ने आश्रम का व सम्बन्धित सारा कार्य श्रीमाँ को सौंप दिया व स्वयं गहन साधना में चले गए| बाहर की दुनियाँ से उनका संपर्क सिर्फ श्रीमाँ के माध्यम से ही रहा| उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण का साक्षात्कार किया और भारत की स्वतंत्रता का वरदान माँगा| भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें वरदान दिया कि तुम्हारे जन्मदिवस (15 अगस्त) को ही भारत स्वतंत्र होगा| उनका उत्तरपाड़ा में दिया भाषण एक ऐतिहासिक दस्तावेज़ है जिसे प्रत्येक भारतीय को पढना चाहिए|

भारत के भविष्य की रूपरेखा भी वे बना कर चले गए| यह कब होगा इसका समय तो उन्होंने नहीं बताया पर यह सुनिश्चित कर के चले गए कि एक अतिमानुषी चेतना का अवतरण होगा जो भारत का रूपान्तरण कर देगी| भारत की अखण्डता की भी भविष्यवाणी उन्होंने की है|

वे इतनी गहन साधना कर सके और इतना महान साहित्य रचा जिसमें अंग्रेजी भाषा का सर्वश्रेष्ठ महाकाव्य -- सावित्री -- भी है, श्रीमाँ के सक्रिय सहयोग के बिना सम्भव नहीं हो सकता था|

श्रीमाँ की उससे अगले दिन की डायरी का यह लेखन है ----
“It matters little that there are thousands of beings plunged in the densest ignorance, He whom we saw yesterday is on earth; his presence is enough to prove that a day will come when darkness shall be transformed into light, and Thy reign shall be indeed established upon earth.”
- The Mother
30 March 1914.

1 comment:

  1. श्रीअरविन्द के शब्दों में .... "सनातन धर्म ही मेरी राजनीति है|"
    भारत में धर्म आधारित राजनीति सृष्टि के आरम्भ काल से ही रही है| धर्म का अर्थ Religion या मज़हब नहीं है| जिस से अभ्युदय और निःश्रेयस की सिद्धि हो वही धर्म है| धर्म ही धारणीय है| राजनीति सदा धर्मसापेक्ष ही हो सकती है, धर्मनिरपेक्ष नहीं|

    ReplyDelete